________________
अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...149 • चंदन घिसने से पूर्व चन्दन (मुठिया), आरस (चन्दन घिसने का पत्थर) एवं उसके आस-पास के क्षेत्र की प्रमार्जना करनी चाहिए।
• चंदन घिसने में उपयोगी जल को अलग से किसी बर्तन में ढंककर रखना चाहिए।
• पूजा करते हुए वस्त्र, बाल, नाखून आदि का जिनबिम्ब से स्पर्श न हो यह विवेक रखना चाहिए।
• पुरुषों को दाईं तरफ एवं महिलाओं को परमात्मा की बाईं तरफ से पूजा करनी चाहिए।
• परमात्मा के दाहिने अंगूठे पर बार-बार तिलक लगाने का कोई विधान नहीं है।
• महिलाओं एवं पुरुषों को सजोड़े एक कटोरी से पूजा नहीं करनी चाहिए। जिनालय के परिसर में महिला एवं पुरुष को परस्पर में स्पर्श नहीं करना चाहिए।
• कम्प्यूटर के बटन दबाने के समान फटाफट परमात्मा की पूजा नहीं करनी चाहिए।
• शरीर खुजलाना, पसीना पोंछना, नाक-कान आदि में अंगुली डालना, खांसना, जम्हाई लेना, आलस मरोड़ना आदि क्रियाएँ पूजा करते समय नहीं करनी चाहिए।
• शरीर में घाव हो और उससे पीव आता हो तो पूजा नहीं करनी चाहिए।
• मौसम के अनुसार केशर, चंदन, बरास आदि का परिणाम बदलना चाहिए। शीतकाल में केशर अधिक और बरास कम, ग्रीष्म काल में बरास अधिक और केसर कम तथा वर्षा ऋतु में दोनों की मात्रा समान रखनी चाहिए।
• सर्वप्रथम मूलनायकजी की पूजा करनी चाहिए। यदि प्रक्षाल आदि बाकी हो तो अन्य जिनबिम्बों की पूजा भी कर सकते हैं।
• पंचधातु एवं सिद्धचक्रजी की पूजा करने के बाद उसी केशर से पाषाण प्रतिमा की पूजा कर सकते हैं परन्तु गुरुमूर्ति एवं अधिष्ठायक देवों की पूजा करने के बाद नहीं।
• महिलाओं को सिर ढंककर ही पूजा करनी चाहिए।