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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...147 अष्ट प्रकारी पूजा सम्बन्धी सावधानियाँ
अष्टप्रकारी पूजा आत्मोत्थान का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस अनुष्ठान में किए जाने वाले प्रत्येक कार्य का आंतरिक एवं बाह्य जगत पर विशिष्ट प्रभाव देखा जाता है। अत: इन पूजाओं को करते हुए पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए। इसी हेतु को ध्यान में रखकर यहाँ पर अष्टप्रकारी पूजा में रखने योग्य सावधानियों का संक्षिप्त विवरण किया जा रहा है। जल पूजा सम्बन्धी सावधानियाँ
• मूल गर्भगृह में मुखकोश बांधकर प्रवेश करना चाहिए तथा मौन रहना चाहिए।
• जलपूजा करते समय जिनबिम्ब को कलश, पहने हुए वस्त्र आदि का स्पर्श न हो या प्रतिमाजी को ठपका न लगे, इसका पूर्ण विवेक रखना चाहिए।
• छोटी पंचधातु की प्रतिमाओं को प्रक्षाल हेतु ले जाने से पूर्व विनम्रता पूर्वक आज्ञा लेनी चाहिए।
• वालाकुंची का उपयोग सावधानी एवं कोमलतापूर्वक करना चाहिए। तथा उपयोग करने से पूर्व उसे दस मिनट तक पानी में भिगाकर रखना चाहिए।
• अभिषेक जल जमीन पर नहीं गिरे तथा उस पर पैर आदि नहीं आएं इसका ध्यान रखना चाहिए।
• अभिषेक जल को अपने शरीर पर लगाने के बाद हाथों को धोकर फिर से पूजा करनी चाहिए।
. न्हवण जल को नाभि से नीचे के अंगों पर नहीं लगाना चाहिए। • अंगलूंछण, पाटलूंछण आदि को न्हवण जल में नहीं डुबाना चाहिए।
• अभिषेक जल को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहाँ पर जीवोत्पत्ति की संभावना न हो तथा किसी का पैर आदि नहीं आए। उस स्थान पर सूर्य की धूप बराबर में आती हो इसका ध्यान रखना चाहिए।
• अभिषेक क्रिया पूर्ण होने के बाद पबासन सूखे वस्त्र से अच्छी तरह पोंछ लेना चाहिए।
• अंगलूंछण वस्त्रों को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। लूंछण करने के बाद उन्हें एक थाली में रखना चाहिए।
• अभिषेक हेतु कुँए आदि का शुद्ध जल एवं गाय का शुद्ध ताजा दूध ही उपयोग में लेना चाहिए।