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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...145 दाम पर बेचे जाने वाले फल नहीं खरीदने चाहिए। इसी प्रकार इंजेक्शन एवं केमिकल्स आदि के द्वारा कृत्रिम रूप से पकाए हुए फलों का भी यथासंभव प्रयोग नहीं करना चाहिए।
पूजा उपयोगी फलों को लाने हेतु Polythene Bag, गंदी थैली, मैले वस्त्र आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। वे फल हमारे शरीर आदि से स्पर्शित न हों, इसका भी विवेक रखना चाहिए। श्रावकों को नित्य ताजे फल लाकर पूजा हेतु उपयोग में लेने चाहिए। Freeze में रखे हुए एक-एक हफ्ते के फल का प्रयोग जिनपूजा हेतु नहीं करना चाहिए।
समस्त दर्शनार्थी एवं पूजार्थी श्रावकों को फल पूजा करनी चाहिए। फलपूजा हेतु फल को थाली में रखकर अथवा विवृत्त समर्पण मुद्रा में उसे हाथ में धारण कर मंत्र आदि का उच्चारण करते हुए सिद्धशिला पर चढ़ाना चाहिए। आचार्य हेमचंद्रसागरजी स्वस्तिक पर फल चढ़ाने का उल्लेख करते हैं। उनके अनुसार स्वस्तिक मंगल का प्रतीक है। इसी कारण परमात्मा एवं गुरु महाराज आदि के समक्ष स्वस्तिक या नंद्यावर्त का आलेखन किया जाता है। परमात्मा की पूजा मंगलकारी है। उस मंगल स्वरूप पूजा का फल जीवन में मंगल वृद्धि करे इस हेतु फल चढ़ाते हैं।
स्वस्तिक यह संसार का प्रतीक है। संसार को प्रभु चरणों में समर्पित कर पंचमगति रूप फल पाने के लिए स्वस्तिक पर फल चढ़ाना चाहिए।
वर्तमान परम्परा में अधिकांश स्थानों पर सिद्धशिला के ऊपर ही फल चढ़ाने की प्रणाली देखी जाती है। सिद्धशिला यह अन्तिम मोक्ष फल की सूचक है। आत्मा का अन्तिम पड़ाव स्थल सिद्धशिला ही है। उसे प्राप्त करने हेतु अन्तिम फल पूजा को उस स्थान पर सम्पन्न किया जाता है।
शंका- जब हम अष्टमी-चतुर्दशी आदि पर्व तिथि को फल खाते नहीं हैं तो फिर मन्दिर में फल कैसे चढ़ा सकते हैं?
समाधान- पर्व तिथि के दिन हरी-वनस्पति त्याग करने के कई कारण हैं। सर्वप्रथम तो श्रेष्ठ वस्तुओं के प्रति रहा आसक्ति भाव न्यून होता है। वनस्पति काय के रूप में उत्पन्न जीवों को अभयदान मिलता है। इसी के साथ हिंसात्मक कार्यों का त्याग होने से शुभ भावों में रमणता बढ़ती है। इससे भी बढ़कर शरीर में पानी की मात्रा संतुलित रहने से व्याधियों से छुटकारा मिलता है क्योंकि इन