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144... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता – मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
• नैवेद्य जीवन को मधुर और वाणी को मीठा रखने की प्रेरणा देता है। जिस प्रकार नैवेद्य पौष्टिक गुणों से युक्त होता है वैसे ही हमारी आत्मा आध्यात्मिक गुणों से युक्त बने यही सूचन नैवेद्य पूजा से प्राप्त होता है। फलपूजा का पारमार्थिक स्वरूप
मोक्ष फल प्राप्ति की भावना से उत्तम जाति के सूखे मेवे तथा सचित्त फल आदि परमात्मा को समर्पित करना फलपूजा कहलाता है। अष्टप्रकारी पूजा में इसका आठवाँ एवं अग्रपूजा में पांचवाँ स्थान है।
जिस प्रकार बीज का अन्तिम Stage फल होता है उसी तरह जिनपूजा का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष फल की प्राप्ति है। इसी के सूचन रूप फल पूजा की जाती है।
परमात्मा और हमारे बीच जो भेद रेखा है वह सांसारिक पदार्थों के कारण है। उसी भेद रेखा को समाप्त करने हेतु परमात्मा की भक्ति फलरूप जो कुछ भी प्राप्त हुआ है उसे परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देना भी फल पूजा का एक कारण है। फल पूजा के द्वारा अनिष्ट कर्म फल नष्ट हो जाते हैं एवं सर्व कार्यों की सिद्धि होती है। ___जिनेश्वर देव की फल पूजा पूर्वकृत दुःख रूप कर्म फलों को सुख रूप में परिवर्तित कर देती है, सुख-शान्ति का विस्तार करती है तथा पापों का निवारण कर शिवफल प्रदान करती है। ___ फल पूजा करने से नौ प्रकार के निधान प्रकट होते हैं तथा चारों दिशाओं में कीर्ति प्रसरित होती है।15
परमात्मा को चढ़ाने हेतु श्रेष्ठ जाति के उत्तम पके हुए ताजे फल उपयोग में लेने चाहिए। श्रीफल को श्रेष्ठ फल माना गया है। ताजे फल के स्थान पर सूखा मेवा जैसे- बदाम आदि भी चढ़ाए जा सकते हैं। फल पूजा में उन्हीं फलों का प्रयोग करना चाहिए जो श्रावक के लिए खाने योग्य है। नई ऋतु के आने पर अर्थात Seasonal फल सर्वप्रथम परमात्मा को चढ़ाना चाहिए।16
फल पूजा हेतु Cold Storage के फल, सड़े हुए फल, बहुबीज फल, अनजाने फल, तुच्छ फल, विदेशी फल आदि नहीं चढ़ाने चाहिए। मेहमानों की थाली में या किसी को भेंट रूप में जैसे फल अर्पित किए जाते हैं वैसे ही परमात्मा के सामने फल प्रस्तुत करने चाहिए। मन्दिर में पुजारियों द्वारा सस्ते