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140... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
यह प्रश्न बच्चों का ही नहीं कई अन्य लोगों का भी हो सकता है। प्रायः सभी सम्प्रदायों में देवी-देवता, भगवान आदि को भोग लगाने हेतु मिठाई ही चढ़ाई जाती है। किसी को मोदक, किसी को लड्डू तो किसी को खीर परन्तु किसी को भी नमकीन नहीं चढ़ाई जाती है ।
जैन मत के अनुसार परमात्मा तो अनाहारी पद को प्राप्त कर चुके हैं, अतः इन्हें मीठा कम या अधिक पसंद होने का तो प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता । व्यवहार जगत में भोज्य पदार्थों के अन्तर्गत मिष्टान्न को उत्कृष्ट द्रव्य माना जाता है। जब भी कोई मेहमान आते हैं या किसी मंगल कार्य का प्रारंभ हो रहा हो या फिर कोई कहीं प्रस्थान कर रहा हो अथवा कोई भी विशिष्ट दिन या पर्व दिवस हो तो मिष्टान्न ही खिलाया जाता है। इसे उत्तम एवं मंगलकारी मानते हैं अतः परमात्मा के समक्ष भी सर्वोत्तम वस्तु के रूप में मिष्टान्न ही अर्पित किया जाता है।
मिष्टान्न चढ़ाने का एक अन्य हेतु अणाहारी पद को प्राप्त करना भी है। संसारी जीव मुख्य रूप से आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह इन चार संज्ञाओं से ग्रसित है। नैवेद्य आदि द्रव्य चढ़ाकर यह जीव आहार संज्ञा पर विजय प्राप्त करने की अभिलाषा करता है । जीव के संसार परिभ्रमण का प्रमुख कारण आहार है। सामान्य व्यवहार में भी कहा जाता है कि “पापी पेट सब कुछ करवाता है" अतः आहार के प्रति आसक्ति न्यून करने के भावों से परमात्मा को नैवेद्य चढ़ाया जाता है।
अरिहंत परमात्मा की नैवेद्य पूजा भ्रम या मिथ्या धारणा का निराकरण कर अन्तराय कर्म का निवारण करती है।
धर्मसंग्रह आदि ग्रंथों में परमात्मा को चार प्रकार के आहार चढ़ाने का वर्णन प्राप्त होता है। 14
1. अशन- पकाए गए चावल, कंसार, दलिया - दाल-सब्जी आदि ।
2. पाण- गुड़, शक्कर का पानी आदि ।
3. खादिम- फल, सूखा मेवा आदि ।
4. स्वादिम - नागरवेल के पान, सुपारी आदि ।
इन चार प्रकार के आहारों से की जाने वाली पूजा विशेष फलदायी होती
है। निशीथ, महानिशीथसूत्र आदि में भी पकाए हुए अन्न चढ़ाने का विधान है।