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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...139 • राजा श्रेणिक हर रोज नवनिर्मित सोने के चावलों से भगवान महावीर जिस दिशा में विचर रहे होते थे उस दिशा में स्वस्तिक बनाते थे।
• कई भावयुत श्रद्धालु श्रावकों द्वारा विशेष अवसरों पर चावल के स्थान पर मोती आदि विशिष्ट रत्नों से अक्षत पूजा करने एवं परमात्मा को बधाने की क्रिया आज भी देखी जाती है।
• अक्षत पूजा के माध्यम से श्रावक नित नए प्रकार से परमात्म भक्ति कर सकता है।
• जिनपूजा हेतु किसी प्रकार का स्वद्रव्य नहीं लाने वाले श्रावक भी चावल तो घर से ही लाते हैं।
• कुसुमांजली हेतु जब पुष्प कम हो या न हो तो केशर मिश्रित चावलों से ही कुसुमांजलि की जाती है।
• अक्षत पूजा के द्वारा जीव वीर्यान्तराय कर्म का क्षय करते हुए आभ्यंतर रूप को आलोकित करता है।
• अक्षत पूजा करने से जीव को अपने परमलक्ष्य रूप पंचम गति तथा चारो गति के स्वरूप का भान रहता है।
• अक्षत पूजा में प्रयुक्त चतुर्दल मुद्रा एवं शिखर मुद्रा शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का शमन करती है। ___अक्षत का अखंड रूप दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है। जल की भाँति चावल को भी जीवन का चिह्न माना है। व्यवहार जगत में भी तिलक पर चावल लगाकर दीर्घ जीवन की प्रार्थना की जाती है। चावल का शाल (छिलका) रहित रूप जीव के शुद्ध स्वरूप का सूचक है। नैवेद्य पूजा का आध्यात्मिक स्वरूप
नैवेद्य का अर्थ होता है मिष्ठान्न या रसयुक्त पदार्थ तथा इनके समर्पण द्वारा होने वाली पूजा नैवेद्य पूजा कहलाती है। अष्टप्रकारी पूजा में इसका सातवाँ एवं अग्रपूजा में चौथा स्थान है।
त्रिविध, चतुर्विध आदि समस्त पूजाओं में नैवेद्य पूजा का उल्लेख है।12 इसे आमिष पूजा भी कहते हैं। यहाँ आमिष से अभिप्राय रसयुक्त द्रव्य से है।13 __कई बार बालकों द्वारा यह प्रश्न सहज रूप में पूछा जाता है कि भगवान को मिठाई क्यों चढ़ाते हैं? क्या भगवान को मिठाई ज्यादा पसंद है?