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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...137 शंका- अक्षत पूजा तर्जनी अंगुली से जबकि जिनपूजा अनामिका अंगुली से की जाती है, ऐसा क्यों?
समाधान- अनामिका अंगुली पवित्रता एवं पूज्यता की सूचक है। अत: परमात्मा की पूजा अनामिका अंगुली से की जाती है।
तर्जनी अंगुली तिरस्कार की सूचक है एवं चारो गतियाँ मनुष्य के लिए हेय,त्याज्य एवं तिरस्कार योग्य मानी गई हैं। क्रोध में आया व्यक्ति जब किसी को दुत्कारता है तो तर्जनी अंगुली का प्रयोग करता है। वैसे ही चारो गतियों से त्रस्त जीव तर्जनी के द्वारा चारो गतियों का तिरस्कार करता है।
यहाँ कोई कह सकता है कि सिद्धशिला भी तिरस्कार योग्य है? नहीं, सिद्धशिला तिरस्कार योग्य नहीं सत्कार योग्य है। जिस प्रकार तर्जनी का प्रयोग तिरस्कार के लिए किया जाता है वैसे ही इसका प्रयोग निर्देश करने हेतु भी होता है। जब किसी की ओर सूचित करना हो या दिशा-निर्देश करना हो तो इसी अंगुली का प्रयोग किया जाता है। तर्जनी अंगुली के द्वारा सिद्धशिला बनाकर जीव को चार गति त्याग के बाद सिद्धशिला प्राप्ति का निर्देश या लक्ष्यदर्शन करवाया जाता है। संसारी जीव को मोक्षगति प्राप्त करवाने में रत्नत्रयी सहायक बनती है अत: दोनों के मध्य रत्नत्रयी के सूचक के रूप में तीन ढेरी बनाई जाती है।
सिद्धशिला के आकार के विषय में भी मतांतर है। कुछ लोग द्वितीया के चंद्रमा जैसी सिद्धशिला बनाकर उसमें एक ढेरी बनाते हैं जो सिद्ध आत्माओं की सूचक है और कुछ आचार्यों के अनुसार सिद्धशिला अष्टमी के चन्द्रमा की भाँति अर्धवर्तुलाकार बनाकर उसमें एक लाईन खींच देनी चाहिए। वर्तमान में दोनों ही परम्पराएँ प्रचलित हैं। परंतु प्रथम परम्परा में अधिक अर्थसाम्य प्रतीत होता है। अक्षतपूजा सम्बन्धी जन अवधारणाएँ
• कई गृहस्थों का कहना है कि चढ़ाये हुए चावल भगवान तो नहीं खाते, उन्हें पुजारी ही लेकर जाता है, तो फिर अच्छी Quality के चावल का क्यों उपयोग करें?
• कोई गृहस्थ यदि भावपूर्वक सुन्दर गहुँली आदि बनाकर द्रव्य का उपयोग बहुलतापूर्वक करता है तो लोगों द्वारा यह कहते हुए भी देखा जाता है कि “क्या भगवान को खिचड़ी बनाकर खानी है जो इतना चावल चढ़ाते हो।"