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128... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
धूप तैयार करना चाहिए। मार्केट में उपलब्ध लकड़ी की काठी वाली अगरबत्ती धूप पूजा के लिए प्रयोग में नहीं लेनी चाहिए क्योंकि उसमें लकड़ी पर धूप चिपकाने हेतु प्राणिज पदार्थों का उपयोग होता है। साथ ही लकड़ी का अशुद्ध धुआं भी धूप में मिश्रित हो जाता है। दर्शनार्थी एवं पूजार्थी सभी श्रावकों को अपना धूप लेकर मन्दिर जाना चाहिए । मन्दिर में रखा हुआ धूप श्रावकों को यथासंभव उपयोग में नहीं लेना चाहिए। जो लोग मन्दिर के धूप का उपयोग करते हैं उन्हें यदि धूप जल रहा हो तो नया धूप नहीं जलाना चाहिए तथा उतना द्रव्य भी भंडार में डाल देना चाहिए।
शंका- शंका हो सकती है कि जब मन्दिर के द्रव्य का प्रयोग नहीं करना तो फिर मन्दिरों में द्रव्य की व्यवस्था ही क्यों रखी जाती है ?
समाधान - श्रावकों के लिए स्वद्रव्य से जिनपूजा करने का विधान है। इससे श्रावक द्वारा अर्जित द्रव्य का शुभ कार्यों में व्यय होता है एवं द्रव्यों के प्रति आसक्ति न्यून होती है । पूर्वकाल में मन्दिरों में देव - द्रव्य की व्यवस्था नहीं रखी जाती थी। इस कारण श्रावक स्वतः द्रव्य लेकर उपस्थित होते थे। दूसरा उस समय नित्य प्रक्षाल का विधान नहीं था अतः केवल अग्र पूजा की सामग्री एवं पुष्पपूजा ही आवश्यक होती थी। तीसरा पहलू यह है कि उस समय त्रिकाल पूजा का क्रम होने से श्रावकों के लिए दोपहर तक सामग्री तैयार करना भी सहज हो जाता था।
परन्तु वर्तमान की बदलती हुई विचारधारा और व्यस्त जीवनशैली के कारण दूर रहने वाले लोगों के लिए मन्दिरों में पुजारी की व्यवस्था की गई और पुजारी की व्यवस्था ने अन्य सुविधाओं को जन्म दिया। इस सुविधावादी व्यवस्था ने भक्ति की अपेक्षा अविधि को ही बढ़ावा दिया है। अतः भले ही मन्दिरों में व्यवस्था की अपेक्षा सुविधा रखी गई हो परन्तु श्रावकों को स्वद्रव्य का ही उपयोग करना चाहिए ।
मन्दिरों में धूप रखने हेतु अलग से छोटा डिब्बा आदि रखना चाहिए। प्लास्टिक के डिब्बे आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जले हुए धूप को दीपक आदि की थाली में या इधर-उधर नहीं रखना चाहिए।
धूप पूजा की प्रचलित विधि
धूप पूजा कहाँ और कैसे करें ? इसका समाधान करते हुए जैनाचार्यों ने