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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...113 सम्भवतः नित्य प्रक्षाल का विधान प्रारंभ होने के बाद ही मध्यकाल में इसका प्रयोग प्रचलन में आया होगा।
प्रक्षाल क्रिया करने के बाद जिनबिम्ब पर रहे जल को पोंछने के लिए अंगलुंछन वस्त्र का प्रयोग किया जाता है। तीन अंगलुंछन वस्त्रों के द्वारा क्रमश: सम्पूर्ण जल को साफ किया जाता है। प्रतिमा पर जलबिन्दु रहने से उसमें मलिनता एवं श्यामता आ जाती है। जलपूजा आत्मशुद्धि का प्रतीक कैसे?
जल शुद्धता एवं शीतलता का प्रतीक है। जल पूजा के द्वारा हृदय, शरीर एवं मन शुद्धता की भावना की जाती है। हिन्दु परम्परा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश के प्रतीक रूप में पूजा विधानों के दौरान जल कलश का प्रयोग किया जाता है।
दूध शांति और सौहार्द का सूचक है। इसे माँ की ममता एवं क्षीर समुद्र के जल का प्रतीक भी माना जाता है। दूध यह पंचामृत का मुख्य घटक है।
वैदिक परम्परा के अनुसार पंचामृत द्वारा अभिषेक करने से मुक्ति प्राप्त होती है। श्रद्धापूर्वक पंचामृत का पान करने वाले को सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की उपलब्धि होती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार पंचामृत में रोग निवारण की विशेष शक्ति रही हुई है।
जिस प्रकार जल से शरीर का मल दूर होता है, वैसे ही जलपूजा के द्वारा आत्मा पर लगा हुआ कर्म मल दूर होता है एवं आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करती है।
इस प्रकार जलपूजा आत्मशुद्धि का परम उपाय है। चंदन पूजा का अर्थ और उसके प्रयोग
चंदन, केशर, कर्पूर, कुंकुम, कस्तूरी एवं बरास आदि सुगंधित द्रव्यों को घोटकर तैयार किए गए विलेपन से परमात्मा के नवअंग की पूजा करना चंदन पूजा कहलाता है। इसे चंदन पूजा, केशर पूजा या विलेपन पूजा भी कहते हैं। अष्टप्रकारी पूजा के क्रम में इसका दूसरा स्थान है।
शंका- वर्तमान में बरास पूजा और केसर पूजा ऐसी दो पूजाएँ प्रचलित हैं। इनमें से चंदन पूजा का समावेश किसमें होता है?