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स्कंध
अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...99
अंगभुजा दत्त पूजना, श्रद्धा निश्चय धार । दो दादा शक्ति मुझे, उतरूँ भवजल पार ।। अर्थ - गुरुदेव के प्रति श्रद्धा एवं संसार मुक्ति का निश्चय कर दादा के भुजाओं की पूजा करते हुए यही कामना करता हूँ कि वे मुझे संसार से पार होने की शक्ति प्रदान करें।
शिखा
शक्ति केन्द्र शिखा पूजना, आनंद मंगल माल । पाऊं मैं सर्वोच्च पद, दादा दत्त दयाल ।।
अर्थ- शिखा अर्थात मस्तक यह शक्ति एवं आनंद का उद्भव स्थान है। सर्वोच्च स्थान पर रही शिखा की पूजा करने से सर्वोच्च पद की प्राप्ति हो, ऐसी प्रार्थना दादा से करते हैं।
ललाट
सागर गुण गुरू दत्त को, पूजो भाव उमंग । भाल अंग नित पूजना, पाओ आत्म तरंग ।। अर्थ - सागर समान अनंत गुण रत्नों के भंडार दादा गुरुदेव के आत्मस्थल की पूजा उमंग एवं उल्लास भावपूर्वक करने से जीव में आत्मगुण तरंगित हो जाते हैं।
कंठ
प्रवचन
पावन कंठ से, जिनवाणी आधार ।
गले तिलक करूं दत्त के, पाऊँ सुख आगार ।।
अर्थ- गुरुदेव के कंठ से निःसृत प्रवचन, जिनवाणी को जानने, समझने एवं उसे आचरण में लाने का मुख्य आधार है। उसे धारण करके मैं आगार धर्म अर्थात संयम जीवन को ग्रहण कर सकूं इसी उत्तम भावना से गुरुदेव के कंठ की पूजा करो।
हृदय
सर्वगच्छ आदर करो, गुरु समता भंडार । हृदय अंग पूजो भवि, कल्पतरु संसार ।। अर्थ- गुरुजन समता के भंडार होते हैं, सभी के प्रति उनके हृदय में