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98... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
अर्थ- परमात्मा ने अपने उपदेशों के द्वारा भव्य जीवों को नवतत्त्व का ज्ञान देकर विश्व व्यवस्था को सुव्यवस्थित रूप दिया। ऐसे परमात्मा के नव अंग की पूजा अत्यंत भावपूर्वक करनी चाहिए, ऐसा मुनि शुभवीर कहते हैं।
इस दोहे से यह स्पष्ट होता है कि परमात्मा ने नव तत्त्व का उपदेश दिया। यह दर्शाने हेतु नौ अंगों की पूजा करते हैं। यह नवांगी पूजा के दोहे मुनि शुभवीर द्वारा रचे गए हैं।
जो लोग पूजाविधि एवं उनके रहस्यों को नहीं जानते वे परमात्मा समान अधिष्ठायक देवों की भी नवांगी पूजा करते हैं। यह शास्त्र मर्यादा के विपरीत है क्योंकि देवी देवताओं का सिर्फ तिलक किया जा सकता है। परमात्मा के समान भगवंतों की नवांगी पूजा करने का वर्णन अनेक शास्त्रों में प्राप्त होता है। उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. द्वारा रचित दादा गुरुदेव की नवांगी पूजा के दोहें इस प्रकार हैं
गुरु
चरण
अंगूठे
पूजा करो, जिन शासन हमको मिला नहीं भूलूँ उपकार ।।
दादा तारणहार ।
अर्थ - तीर्थंकरों द्वारा स्थापित जिनधर्म की अखंडता का श्रेय आचार्य आदि मुनियों को जाता है। दादा गुरुदेव ने लाखों लोगों को जैन कुल में स्थापित किया। अत: ऐसे गुरुदेव के उपकारों का स्मरण कर उनके चरणों की पूजा करें।
जानु -
गाँव-गाँव में संचरे, दत्त जानु पूजो भवि,
अर्थ - जिस जंघा बल या घुटनों के आधार पर गुरुदेव ने गाँव-गाँव और शहर-शहर में विचरण कर जिन धर्म का प्रचार किया। ऐसे गुरुदेव के जानु स्थान की पूजा करने से अनंत शक्ति प्राप्त होती है ।
कलाई -
किना धर्म प्रचार । पाओ शक्ति अपार ।।
वासक्षेप दे लक्ष को, जैन बनाया सार । कर पूजो गुरु दत्त के, दादा जय जयकार ।। अर्थ- जिनदत्तसूरिजी ने अपनी वासक्षेप के द्वारा लाखों नूतन लोगों को जैन बनाया है। ऐसे दादा की जय-जयकार करते हुए गुरुदेव के कर युगल की पूजा करें।