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• किसी भी दीवार का सहारा लिए बिना खड़े रहना आदि ।
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होठ, हाथ की अंगुलियाँ, दृष्टि सभी को स्थिर रखकर कायोत्सर्ग करना
चाहिए।
जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...87
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कायोत्सर्ग करते समय पैरों के आगे की तरफ चार अंगुल का एवं पीछे की तरफ इससे कुछ कम अन्तर होना चाहिए।
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कायोत्सर्ग करते समय मुख से उच्चारण अथवा, गण-मण नहीं करना
चाहिए।
• कायोत्सर्ग में रखे गए आगार (छूट) के अतिरिक्त अन्य किसी कारण से विचलित या अस्थिर नहीं होना चाहिए।
परमात्मा को बधाने की विधि
• चैत्यवंदन रूप भावपूजा समाप्त होने के पश्चात सोना, रूपा, हीरा, माणक, मोती आदि से प्रभु को दोनों हाथों से बधाना चाहिए।
बधाने के लिए यदि बहुमूल्य सामग्री लाना संभव नहीं हो तो सोने-चाँदी की पॉलिश वाले पुष्प, मोती या अखंड चावलों से परमात्मा को बधाना चाहिए। बधाते समय स्वस्तिक आदि के चावल नहीं उठाकर नए चावल लेने चाहिए। चावलों से अंजलि को भर देना चाहिए।
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उछाले
हुए चावल जमीन पर पैरों के नीचे नहीं आने चाहिए।
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मन्दिर से बाहर निकलने की विधि
• परमात्मा के सन्मुख दृष्टि रखकर हृदय में परमात्मा का वास करते हुए परमात्मा की तरफ पीठ न आए इस प्रकार आगे और पीछे दोनों तरफ की जया रखते हु उल्टे कदमों से मन्दिरजी से बाहर निकलना चाहिए।
• द्वार के पास पहुँचने से पूर्व परमात्म दर्शन के आनंद की अभिव्यक्ति करने हेतु तीन बार घंटनाद करना चाहिए।
• घंटनाद के बाद परमात्मा से दूर जाने के विरह भाव एवं पापमय संसार में पुनः लौटने के लिए आंतरिक पीड़ा का अनुभव एवं भाव करने चाहिए। तदनन्तर मन्दिर से बाहर निकलें।
• मन्दिर से बाहर निकलते हुए तीन बार 'आवस्सही' कहें।