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86... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... चैत्यवंदन करने की विधि
• द्रव्यपूजा करने के बाद भावपूजा के रूप में चैत्यवंदन विधि की जाती है।
• जिनेश्वर परमात्मा की दायीं तरफ पुरुषों को एवं बायीं तरफ महिलाओं को एक निश्चित अवग्रह रखते हुए स्तुति, स्तोत्र, स्तवन आदि के साथ चैत्यवंदन करना चाहिए।
. चैत्यवंदन विधि प्रारंभ करने से पूर्व द्रव्यपूजा के त्यागरूप तीसरी निसीहि का उच्चारण कर पूजा सम्बन्धी द्रव्यों से रहे हए सम्बन्ध को भी विच्छिन्न कर दिया जाता है। अत: चैत्यवंदन करते समय चढ़ाए गए अक्षत आदि से पूजार्थी का कोई भी सम्बन्ध नहीं रहना चाहिए।
• चैत्यवंदन प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम योग मुद्रा में इरियावहियं करनी चाहिए।
• इरियावहियं करते हुए पच्चक्खाण लेने या देने की क्रिया, बीच में उठकर प्रक्षाल आदि करना, घर जाने से पहले पुनः एक बार परमात्मा के चरणों को भेंटना आदि दोषयुक्त है।
. चैत्यवंदन करने हेतु दाहिना पाँव जमीन पर एवं बायां घुटना ऊपर उठाकर हाथों को योगमुद्रा में रखना चाहिए।
• जावंति चेइआइ, जावंत केवि साहु और जयवीयराय यह तीनों प्रणिधान सूत्र हाथों की मुक्ताशुक्ति मुद्रा में बोलने चाहिए।
• मन को स्थिर रखने के लिए सूत्र एवं उनके अर्थ का चिंतन सूत्रोच्चारण करते हुए करना चाहिए।
• चैत्यवंदन आदि करने के पश्चात पच्चक्खाण करना चाहिए। उसके बाद एक खमासमण देकर प्रभुपूजा से प्राप्त आनंद को अभिव्यक्त करने के लिए स्तुतियाँ बोलनी चाहिए।
• फिर एक खमासमण देकर उभड़क पैरों से जमीन पर घुटनों को स्थापित करके एवं सीधे हाथ को मुट्ठी रूप में नीचे रखकर प्रभुभक्ति के दरम्यान की गई अविधि के लिए मिच्छामि दुक्कडम् करना चाहिए। कायोत्सर्ग करने की विधि
• 19 दोषों से रहित होकर शरीर को स्थिर करते हुए एवं दृष्टि को प्रभु के समक्ष या अपने नासाग्र पर केन्द्रित कर कायोत्सर्ग करना चाहिए।