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80... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
• पुरुषों को भगवान की दायीं तरफ खड़े रहके एवं महिलाओं को बायीं तरफ खड़े रहके पूजा करनी चाहिए।
• पूजा करते हुए पंचधातु की प्रतिमा, छोटी प्रतिमा या सिद्धचक्र के गट्टाजी को हिलाना नहीं चाहिए।
• कोई भविक व्यक्ति परमात्मा की अंग रचना कर रहा हो या कर चुका हो तो पूजा का आग्रह नहीं रखना चाहिए। अन्य प्रतिमाजी की पूजा कर लेनी । चाहिए।
• पूजा करते समय सर्वप्रथम मूलनायक परमात्मा, फिर अन्य परमात्मा, सिद्धचक्रजी, बीसस्थानकजी, प्रवचन मुद्रा में गणधर प्रतिमा, गुरुमूर्ति, शासन अधिष्ठायक देवी-देवता की पूजा क्रमश: करनी चाहिए। ___ • यदि मूलनायक की पूजा होने में विलम्ब हो तथा पूजार्थी के पास उतना समय न हो तो थोड़ा सा केशर अलग रखकर शेष सभी की पूजा कर सकते हैं।
. यदि प्रतिमाजी के ऊपर से केशर की धारा निकल रही हो तो पहले अतिरिक्त केशर को साफ करके फिर पूजा करनी चाहिए।
• अष्टमंगल का पट्ट, लंछन, श्रीवत्स और हथेली की पूजा नहीं करनी चाहिए।
• सिद्धचक्र की पूजा करने के बाद उसी केशर से वीतराग परमात्मा की पूजा कर सकते हैं।
• देवी-देवताओं की पूजा अंगूठे से तिलक लगाकर करनी चाहिए। पुष्प पूजा करने की विधि
• परमात्मा को चढ़ाने हेतु शुद्ध, सुगन्धित, धूल आदि से रहित, अखंड, पूर्ण विकसित, ताजे पुष्पों का ही प्रयोग करना चाहिए।
• मूल विधि के अनुसार तो जो पुष्प सहज रूप में बिछाए हुए वस्त्र पर गिर जाएं उन्हीं ताजे पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए।
• यदि पुष्पों को पेड़ से तोड़ना हो तो अत्यंत सावधानी एवं कोमलता पूर्वक अंगुलिओं पर सोना, चाँदी या पीतल के कवर चढ़ाकर उन्हें छूटना चाहिए।
• माली आदि से पुष्प खरीदे तो भी शुद्धता एवं ताजगी का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।