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जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...79 • विलेपन वस्त्र को धोने के पश्चात उसे अंगलुंछन वस्त्र के साथ सुखा सकते हैं।
• यदि अंगरचना करनी हो तो ही विलेपन पूजा करनी चाहिए। केशर पूजा की विधि
• जिनेश्वर परमात्मा की केशर पूजा करने हेतु अंबर, कस्तूरी, बरास चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों को मिश्रित कर मध्यम प्रकार का पेस्ट तैयार करना चाहिए।
• केशर को धूप से संस्कारित कर फिर मूल गर्भगृह में ले जाना चाहिए। अनामिका अंगुली के द्वारा परमात्मा की नवांगी पूजा करनी चाहिए।
• केशर का नाखून से स्पर्श नहीं हो इसकी सावधानी रखनी चाहिए। यदि नाखून से स्पर्श हो जाए तो केशर का विसर्जन कर देना चाहिए।
• मुखकोश को इस प्रकार बांधना चाहिए कि नाक और मुख दोनों ही ढके हुए रहें।
• परमात्मा के नौ अंगों की पूजा तेरह टीकी लगाकर की जाती है। पहले दाएँ अंग पर और फिर बाएँ अंग पर पूजा करनी चाहिए। ___ • एक अंग की पूजा के लिए एक ही बार केशर लेनी चाहिए। यदि केशर समाप्त हो जाए तो कटोरी में दूसरी केशर ले सकते हैं।
• परमात्मा के किसी भी अंग की पूजा एक बार ही होती है। चरण की जगह सिर्फ अंगूठे की ही पूजा होती है और उसे एक बार ही करनी चाहिए।
• नौ अंगों की पूजा क्रम से करनी चाहिए। पहले दोहे का चिंतन और फिर उस अंग की पूजा करनी चाहिए।
• पूजा के समय पूर्ण मौन रहते हुए कोई भक्ति स्तोत्र आदि भी नहीं बोलना चाहिए।
• पूजा विधिपूर्वक एवं शांति से करनी चाहिए। अधिक प्रतिमाओं की पूजा करने के लिए सभी बिम्बों की पूजा को फटा-फट निपटा देना, अंगुली में एक बार केशर लेकर नौ अंगों की पूजा कर लेना दोषपूर्ण है। सभी बिम्बों की पूजा करना अति उत्तम है परन्तु अधिक के लिए अविधि करने की अपेक्षा थोड़े की विधिपूर्वक पूजा करना अधिक औचित्यपूर्ण है।