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74... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
• प्रभु भक्ति से प्राप्त आनंद की अभिव्यक्ति एवं उसे जग जाहिर करने हेतु मन्दिर से निकलते समय चौथी बार घंटनाद करना चाहिए।
• घंटनाद करते हुए यह विवेक अवश्य रखना चाहिए कि उससे अन्य दर्शनार्थियों को अंतराय उत्पन्न नहीं हो। प्रदक्षिणा देने की विधि
• प्रदक्षिणा देते समय समवसरण में विराजित तीर्थंकर परमात्मा की कल्पना करते हुए एवं मूलनायक परमात्मा की दायीं तरफ से तीनों दिशाओं में रही हुई मंगल मूर्तियों को वंदन करते हुए तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए। इसी कारण अधिकांश जिनालयों में मंदिर के मूल गर्भगृह के बाहर तीन दिशाओं में एक-एक प्रतिमा होती है।18
• मौन पूर्वक अथवा प्रदक्षिणा के दोहे बोलते हुए जयणापूर्वक प्रदक्षिणा देनी चाहिए।
• यदि सामुदायिक क्रिया कर रहे हों तो ज्येष्ठ व्यक्ति को सबसे आगे रखना चाहिए। पुरुष वर्ग को आगे और महिला वर्ग को पीछे रहना चाहिए।
• प्रदक्षिणा देते हुए सम्पूर्ण पूजा सामग्री को हाथ में लेकर प्रदक्षिणा देनी चाहिए।
• सामर्थ्य हो तो सम्पूर्ण मन्दिर परिसर की अथवा मूलनायक प्रतिमा जी की प्रदक्षिणा देनी चाहिए। यदि वह शक्य न हो तो त्रिगड़ा में विराजमान प्रतिमाजी की प्रदक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।
• प्रदक्षिणा देने का एक हेतु मन्दिर का सूक्ष्म निरीक्षण करना भी है। अत: प्रदक्षिणा देते समय मन्दिर के हर कोने को अच्छे से देख लेना चाहिए।
• प्रदक्षिणा के दोहों को अत्यंत मंद स्वर में बोलना चाहिए। स्तुति बोलने की विधि
. • प्रदक्षिणा देने के बाद मूल गर्भगृह के द्वार के समीप खड़े होकर परमात्मा को अर्धावनत प्रणाम करके स्तुति बोलनी चाहिए।
• स्तुति बोलते समय श्रावक वर्ग को परमात्मा की दायीं तरफ एवं श्राविका वर्ग को परमात्मा की बायीं तरफ खड़े रहना चाहिए।
• पैकेट का दूध, बासी दूध, सोयाबीन का दूध आदि प्रक्षाल हेतु प्रयोग में नहीं लेना चाहिए। इस विषय में सावधानी रखना अत्यंत आवश्यक है, वरना जीवोत्पत्ति की संभावना रहती है।