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40... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
• तदनन्तर तीन खमासमण पूर्वक 'तीसरी निसीहि' बोलकर भावपूजा रूप परमात्मा का चैत्यवंदन करें।
• चैत्यवंदन विधि पूर्ण होने के बाद शुभ संकल्प के रूप में शक्ति अनुसार प्रत्याख्यान ग्रहण करें।
• फिर हर्ष की अभिव्यक्ति हेतु परमात्मा को मोती-अक्षत आदि से बधाएँ एवं घंटनाद करें।
• तत्पश्चात प्रभु मूरत को निहारते हुए परमात्मा की तीनों अवस्थाओं का चिंतन करें। फिर धीरे-धीरे उल्टे कदमों से बाहर निकलें।
• यदि व्यवस्था हो तो बाहर ओटले (चौकी) पर बैठकर पूजा से प्राप्त आनंद की अनुभूति करते हुए मन को शुभभावों में स्थिर करें।
• उसके बाद तीन बार ‘आवस्सही' कहकर पुनः आने की भावना के साथ शुभ भावों से घर की ओर प्रयाण करें।
• यदि पूजा के वस्त्रों को अधिक समय तक पहनकर रखा हो या गर्मी आदि के कारण पसीना आया हो तो उन्हें पानी से निकाल देना चाहिए। प्रभुदर्शन करने वालों को अंगपूजा सम्बन्धी विधि छोड़कर शेष विधि का यथावत पालन करना चाहिए। जहाँ पर सुबह में ही प्रक्षाल हो जाता है वहाँ पर प्रात:काल में भी पूर्व वर्णित क्रम से पूजा करनी चाहिए। संध्याकालीन पूजा का क्रमिक वर्णन ____ त्रिकालदर्शन की विधि में अन्तिम क्रम संध्याकालीन पूजा का है। परमात्मा के संध्याकालीन दर्शन का शास्त्रोक्त समय सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व है। प्रात:कालीन दर्शन क्रम के समान ही संध्याकालीन दर्शन का क्रम जानना चाहिए। यहाँ प्रदक्षिणा तक का क्रम समान है। इस समय अंग पूजा अर्थात नवांगी पूजा, पुष्प पूजा, जल पूजा आदि नहीं होती है। तत्पश्चात धूप, दीप, चामर आदि से पूजा कर चैत्यवंदन करें। चैत्यवंदन के पश्चात चौविहार, तिविहार आदि का पच्चक्खाण करें। संध्याकालीन दर्शन में मुख्य रूप से आरती उतारी जाती है।
आरती के बाद शुभ भाव करते हुए पूर्व विधि के समान ही जिनमन्दिर से बाहर होना चाहिए।