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प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना ...lv भाव अभिव्यक्त न किया हो तो सहृदय मिच्छामि दुक्कडम् की प्रार्थी हूँ।
प्रतिबिम्ब इन्दू का देख जल में, आनंद पाता है बाल ज्यों। आप्त वाणी मनन कर, आज प्रसन्नचित्त मैं हूँ। सत्गुरु जनों के मार्ग का, यदि सत्प्ररूपण ना किया । क्षमत्व हूँ मैं सुज्ञ जनों से, हो क्षमा मुझ गल्तियाँ।।