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________________ प्रतिक्रमण क्रिया में अपेक्षित सावधानियाँ एवं आपवादिक विधियाँ ...233 सचित्त-अचित्त रज ओहडावणी कायोत्सर्ग विधि । ___ आगमिक टीकाओं के अनुसार साधु-साध्वियों को प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला ग्यारस, बारस और तेरस, अथवा बारस, तेरस और चौदस अथवा तेरस, चौदस और पूनम ऐसे तीन दिन सचित्त-अचित्त वृष्टि रज के दोष को दूर करने निमित्त कायोत्सर्ग करना चाहिए। श्वेताम्बर की कुछ परम्पराओं में आज भी यह कायोत्सर्ग किया जाता है। __इस कायोत्सर्ग के पीछे मुख्य हेतु यह दिया गया है कि कदाचित एकादशी और द्वादशी के दिन से कायोत्सर्ग करना भल जायें तो त्रयोदशी, चतर्दशी और पूर्णिमा के दिन अवश्य करना चाहिए। यदि त्रयोदशी के दिन से भी कायोत्सर्ग करने में भूल हो जाये तो दूसरे वर्ष की चैत्री पूनम तक जब भी रजोवृष्टि हो उस दिन स्वाध्याय नहीं किया जा सकता। स्पष्ट है कि आगामी एक वर्ष पर्यन्त रजोवृष्टि का अस्वाध्याय रहता है। विशेषं तु ज्ञानी गम्यम्। यह कायोत्सर्ग प्रतिक्रमण के पश्चात किया जाता है इसलिए इसे प्रतिक्रमण-विधि के अन्तर्गत कहा गया है। दैवसिक प्रतिक्रमण हो जाने के बाद एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन्! सचित्त अचित्तरज ओहडावणत्थं काउस्सग्ग करूं? इच्छं,' कहकर पुनः सचित्त अचित्त रज ओहडावणत्थं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक, अन्नत्थसूत्र बोलकर चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहें। यहाँ कहा जा सकता है कि षडावश्यक जो कि वर्तमान में प्रतिक्रमण के नाम से पहचाना जाता है जैन साधना की एक प्रमुख क्रिया है। इसीलिए जैनागमों में इसे आवश्यक की उपमा दी गई है। व्यवहार जगत में भी आवश्यक चर्या का सम्यक रूप से संपादन होना जरूरी माना जाता है। वरना सामान्य प्रतीत होने वाली रोजमर्रा की क्रियाएँ पूरे जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं। ऐसे ही प्रतिक्रमण यद्यपि एक दैनिक क्रिया है परंतु इसमें अपेक्षित सावधानियों के प्रति थोड़ी सी लापरवाही सम्पूर्ण आध्यात्मिक प्रगति पर Break लगा देती है। अत: मोक्ष पथ पर आरूढ़ भव्य जीवों की निराबाध गति के लिए प्रतिक्रमण की आपवादिक विधियों एवं अपेक्षित सावधानियों को दिग्दर्शित करते हुए साधकों का मार्ग प्रशस्त किया गया है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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