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________________ 210... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना में तो किन्हीं परम्पराओं में पाँच मुँहपत्ति, पाँच महाव्रत या पंचाचार के प्रतिरूप में रखी जाती है। शंका- दैवसिक प्रतिक्रमण के पूर्व चौबीस मांडला की विधि करते वक्त रजोहरण से चारों दिशाओं में संकेत करने का अभिप्राय क्या है? समाधान- मांडले के समय चारों दिशाओं में ओघे के संकेत द्वारा रात्रि में आवश्यक क्रियाओं के आवागमन एवं मल-मूत्रादि के विसर्जन हेतु सौ-सौ हाथ की भूमि का अवग्रह (छूट) रखा जाता है। शंका- दैवसिक प्रतिक्रमण करते वक्त श्रावक या गृहस्थ सज्झाय बोल सकते हैं या नहीं? समाधान- सज्झाय उपदेश रूप होती है अत: इसे बोलने का आदेश गृहस्थ को नहीं दिया गया है। गृहस्थ के आचरण में उतनी शुद्धता एवं दृढ़ता नहीं होती जो साधु के जीवन में होती है। आचरित उपदेश जीवन में जल्दी उतरता है। गृहस्थ का किसी से आपसी मनमुटाव हो तो वह हास्य या उपहास का कारण भी बन सकता है। अत: साधु को ही सज्झाय का आदेश दिया गया है। शंका- प्रत्येक क्रिया में मुखवस्त्रिका आवश्यक क्यों? तथा बार-बार उसका प्रतिलेखन क्यों करना चाहिए? समाधान- मुँहपत्ति यह जीव रक्षा का उपकरण है। बोलने से वायुकाय के जीवों की हिंसा होती है इसलिए साधु को प्रत्येक समय मुँहपत्ति का उपयोग रखना चाहिए। मुहपत्ति रखने से साधु को संयमी जीवन का भान रहता है। प्रत्येक क्रिया में मुँहपत्ति पडिलेहण करते हुए साधु बार-बार जो क्रिया करता है उससे प्रमाद दूर होता है। शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है। भावों से कषाय आदि के भाव दूर होते हैं तथा उकडु आसन में बैठने से शारीरिक रोग भी उपशांत होते हैं। शंका- स्थापनाचार्य रखने का उद्देश्य क्या है? तथा साधु प्रत्येक क्रिया स्थापनाचार्य के सम्मुख क्यों करें? समाधान- जिस तरह प्रत्यक्ष जिनेश्वर के अभाव में जिनप्रतिमा का वन्दन-पूजन फलदायी होता है, वैसे ही प्रत्यक्ष गुरु महाराज के अभाव में स्थापनाचार्य के सम्मुख क्रिया करने से वह अवश्यमेव फलदायी होती है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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