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192... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
शंका- पूर्व में सामान्य और विशेष रूप से पाक्षिक अपराधों की क्षमायाचना कर ली है फिर पुनः समाप्ति खामणा क्यों? ।
समाधान- हेतु गर्भ (पृ. 23) में समाप्ति खामणा के कई हेतु बताये गये हैं। प्रथम यह है कि मूलगुण-उत्तरगुण विशुद्धि निमित्त कायोत्सर्ग में स्थित एवं शुभ-एकाग्र भाव को प्राप्त होने पर भी किंचित अपराध विस्मृत रह गये हों, तो इस क्षमापना के द्वारा उनकी पुनः शुद्धि कर ली जाती है। दूसरा हेतु यह है कि इस पाक्षिक प्रतिक्रमण की परिसमाप्ति के पूर्व तक किंचिद् अप्रीति हुई हो, वितथ क्रिया हुई हो, तो समाप्ति खामणा से उसकी शुद्धि की जाती है। तीसरा प्रयोजन यह है कि तीर्थंकरों के द्वारा समाप्ति खामणा विधि को तीसरे वैद्य की
औषध के समान माना गया है अत: उस कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए भी तीसरी बार क्षमायाचना करते हैं क्योंकि 'आज्ञैवेह भागवती प्रमाणम्।'
शंका- पाक्षिक प्रतिक्रमण के पहले दिन मंगलिक प्रतिक्रमण क्यों किया जाता है?
समाधान- पाक्षिक, चातुर्मासिक या सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करने से पहले दिन मांगलिक प्रतिक्रमण करने का हेतु यह है कि पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण में पक्ष, चातुर्मास या वर्ष की विशेष आलोचना की जाती है तथा पाक्षिक आदि धर्म क्रियाओं के विशिष्ट दिन हैं और उन दिनों की आराधना निर्विघ्न रूप से हो, इसलिए पूर्व दिन से ही मंगल की कामना कर ली जाती है।
शंका- अजितशान्ति और बड़ी शान्ति में क्या अन्तर है तथा पाक्षिक प्रतिक्रमण में दोनों ही पाठ क्यों बोले जाते हैं?
समाधान- अजितशान्ति स्तव परमात्मा के गुणगान एवं स्तवना रूप है। इसमें अजितनाथ भगवान और शान्तिनाथ भगवान- इन दोनों तीर्थंकरों की महिमा का वर्णन है तथा इस पाठ में 'शान्ति' का अभिप्राय शान्तिनाथ भगवान है। . यह स्तव छह आवश्यक की क्रिया पूर्ण होने पर हर्ष की अभिव्यक्ति हेतु स्तवन के स्थान पर बोला जाता है। जबकि बड़ी शांति का पाठ समस्त संघ एवं विश्व की शान्ति के लिए प्रतिक्रमण के अन्तिम चरण में बोला जाता है। बड़ी
शांति में तीनों चोवीशी, वर्तमान चोवीशी के माता-पिता, यक्ष-यक्षिणी, सोलह विद्या देवियाँ आदि का स्मरण किया गया है। इस प्रकार प्रतिक्रमण में दोनों पाठ भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न हेतुओं से बोले जाते हैं।