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________________ 150... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 22. जिणमुणिवंदण, अइयारूस्सग्गो पुत्ति वंदणाऽऽलोए । सुत्तं वंदण खामण, वंदण तिन्नेव उस्सग्गा ।। चरणे दंसणनाणे, उज्जोया दुन्नि एक्क एक्को य। सुयदेवयादुसग्गा, पोत्ती वंदण तिथुइथोत्तं ।। . सुबोधा सामाचारी, पृ.15 23. संग्रह गाथा सुबोधासामाचारी पाठ के समान है। तिलकाचार्य सामाचारी, पृ. 29 24. विधिमार्गप्रपा, पृ. 22-23 25. आचारदिनकर, भा.2, पृ. 327-328 26. यतिदिनचर्या, भावदेवसूरि, पृ. 65-67 27. साधुविधिप्रकाश, पृ. 10-12 28. पंच प्रतिक्रमणसूत्र, प्रेरणा प्रधानविजयजी, पृ. 251-255 29. श्री विधिपक्ष गच्छीय पंच प्रतिक्रमण सूत्र, पृ. 27-53 30. श्री मन्त्रागपुरीय बृहत्तापागच्छीय श्री देवसीराई प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. 13-62 31. श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय प्रतिक्रमणादि स्वाध्याय समुच्चय, पृ. 65-120 32. साधुविधिप्रकाश, पृ. 14 33. वही, पृ. 16 34. विधिमार्गप्रपा, पृ. 65 35. (क) आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 64 (ख) आवश्यक नियुक्ति, 1250-1251 (ग) वही, 1247 36. पंचवस्तुक, 492 37. योगशास्त्र, 3/129 की टीका 38. मुहपोत्तीवंदणयं, संबुद्धाखामणं तहा लोए। वंदण पत्तेयं खामणाणि, वंदणयसुत्तं च ॥ सुत्तं अब्भुट्ठाणं, उस्सग्गो पुत्तिवंदणं तह य। पज्जंते खामणयं, एस विही पक्खि पडिक्कमणे ॥ प्रवचनसारोद्धार, 3/181-182 39. सुबोधा सामाचारी, पृ. 15 इसकी संग्रह गाथा उक्त पाठ के समान है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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