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________________ 76... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 12. समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वं हवइ जम्हा। अन्ते अहोणिसस्स, तम्हा आवस्सयं नाम ॥ आवश्यकनियुक्ति, पृ. 53 13. सपडिक्कमणो धम्मो, पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। . मज्झिमयाण जिणाणं, कारणजाए पडिक्कमणं ॥ आवश्यकनियुक्ति, 1244 14. अखण्डं सूत्रं पठनीयमिति न्यायात् । ___ धर्मसंग्रह, पृ. 223 15. जिनवाणी, (प्रतिक्रमण विशेषांक), सन् 2006, नवम्बर, पृ. 98 16. प्रशमरति प्रकरण, श्लो. 143 17. तत्त्वार्थ-श्रुतसागरीय वृत्ति, 3/27 18. (क) आवश्यकनियुक्ति, गा. 121 की मलयगिरि टीका (ख) भगवती आराधना, 423 19. तत्त्वार्थ राजवार्तिक, 9/22, पृ. 620 20. प्राय इत्युच्यते लोकश्चित्तं तस्य मनो भवेत् । तच्चित्तग्राहकं कर्म, प्रायश्चित्तमिति स्मृतम् ॥ धवलाटीका 21. (क) स्थानांगसूत्र, 10/73 (ख) मूलाचार, 362 22. गुणवद्वहुमानादे, नित्यस्मृत्या च सत्क्रिया। जातं न पातयेद्भाव, मजातं जनेयदपि । क्षायोपशमिके भावे, या क्रिया क्रियते तया। पतितस्यापि तद्भाव, प्रवृद्धिर्जायते पुनः ।। गुणवृद्ध्य ततः कुर्या, त्क्रियामस्खलनाय वा। एकं तु संयमस्थानं, जिनानामवतिष्ठते । ज्ञानसार, क्रियाष्टक 23. जिनवाणी, पृ. 98 24. जंबुदीवे जे हुंति पव्वया, ते चेव हुंति हेमस्स। दिज्जति सत्तखित्ते न, छुट्टए दिवस पच्छित्तं ।।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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