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प्रतिक्रमण के गूढ़ रहस्यों का विविध पक्षीय अनुसंधान ...45 कायोत्सर्ग, चित्त की एकाग्रता पैदा करता है और आत्मा को अपना स्वरूप विचारने का अवसर देता है जिससे आत्मा निर्भय बन कर अपने कठिनतम उद्देश्य को सिद्ध कर सकता है। इसी कारण कायोत्सर्ग क्रिया भी आध्यात्मिक है। ___दुनियाँ में जो कुछ है, वह सब न तो भोगा जा सकता है और न भोगने के योग्य है तथा वास्तविक शान्ति अपरिमित भोग से भी सम्भव नहीं है। इसलिए प्रत्याख्यान क्रिया के द्वारा साधक अपने को व्यर्थ के भोगों से बचाते हैं
और उसके द्वारा चिरकालीन आत्म शान्ति पाते हैं। अतएव प्रत्याख्यान क्रिया भी आध्यात्मिक ही है। प्रतिक्रमण का अधिकारी और उसका विधि विमर्श
. इस अध्याय में प्रतिक्रमण शब्द का अभिप्राय छह आवश्यकों से है। यहाँ उसके सम्बन्ध में मुख्य दो प्रश्नों पर विचार करेंगे- 1. प्रतिक्रमण के अधिकारी कौन हैं? और 2. प्रचलित प्रतिक्रमण शास्त्रीय एवं युक्तिसंगत है या नहीं? ___प्रथम प्रश्न का उत्तर यह है कि साधु-श्रावक दोनों 'प्रतिक्रमण' के अधिकारी हैं, क्योंकि शास्त्र में साधु-श्रावक दोनों के लिये सायंकालीन और प्रात:कालीन अवश्य कर्त्तव्य रूप से 'प्रतिक्रमण' का विधान है12 और अतिचार आदि लगे हो या नहीं, परन्तु प्रथम और चरम तीर्थंकर के शासन में 'प्रतिक्रमण' सहित ही धर्म बतलाया गया है।13
दूसरा प्रश्न साधु और श्रावक- दोनों की 'प्रतिक्रमण' विधि से सम्बन्ध रखता है। यद्यपि मुनियों का चारित्र विषयक क्षयोपशम अल्पाधिक हो सकता है परन्तु सामान्य रूप से वे पंच महाव्रत को त्रिविध-त्रिविध पूर्वक धारण करते हैं। अतएव सभी साधुओं को अपने पंच महाव्रतों में लगे हुए अतिचारों के संशोधन हेतु आलोचना या 'प्रतिक्रमण' नामक चौथा आवश्यक समान रूप से करना चाहिए और इसके लिये साधुओं को एक जैसा आलोचना सूत्र पढ़ना चाहिए। किन्तु श्रावकों के सम्बन्ध में तर्क पैदा होता है और वह यह कि श्रावक अनेक प्रकार के होते हैं। कोई अव्रती है, तो कोई व्रती है। इस प्रकार कोई अधिक से अधिक बारह व्रत तक धारण कर सकता है तो कोई संलेखना भी। व्रत भी किसी को द्विविध-त्रिविध से, किसी को एकविध-त्रिविध से, किसी को एकविध-द्विविध से, ऐसे अनेक प्रकार से दिलाया जाता है। अतएव श्रावक विविध अभिग्रह वाले