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________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ... 393 41. गुरुसक्खिओ उ धम्मो, संपुन्नविही कयाइ य विसेसो । तित्थयराण य आणा, साहु समीवंमि वोसिरउ ॥ श्रावकप्रज्ञप्ति, गा. 351 42. आवश्यकसूत्र, संपा. मधुकर मुनि, पृ. 111, 6/1 43. वही, पृ.6/2 44. वही, पृ. 6/3 45. वही, पृ. 6/4 46. वही, पृ.6/5 47. वही, पृ. 6/6 48. प्रबोधटीका, भा. 3, पृ. 94 49. आवश्यकसूत्र, 6/10 50. अर्वाचीन कृतियों में 'सूरे उग्गए' ऐसा पाठ मिलता है तथा वर्तमान व्यवहार में प्रबोधटीका, भा. 3, पृ. 94 भी यही प्रचलित है। 51. वही, पृ. 94 52. आवश्यकसूत्र, 6/7 53. प्रबोधटीका, भा. 3, पृ. 95 54. आवश्यकसूत्र, 6/9 55. प्रबोधटीका, भा. 3, पृ. 96 56. आवश्यकसूत्र, 6/8 57. प्रबोधटीका, भा. 3, पृ. 96 58. वही पृ. 97 59. वही पृ. 97 60. 61. वही, पृ. 120 62. गीता, 18/4, 7-9 63. दो चेव नमोक्कारे, सत्तेव य आवश्यकसूत्र, पृ. 120 आगारा छच्च पोरिसीए उ । पुरिमड्ढे, एक्कासणगंमि अट्ठेव ॥ सत्तेगट्ठाणस्स उ, अट्ठेव य अंबिलंमि पंचेव अब्भत्तट्ठे, छप्पाणे चरिम आगारा । चत्तारि ॥
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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