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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...391
अद्धाणगदं णवमंदसमं, तु सहेदुगं वियाणाहि । पच्चक्खाणवियप्पा, णिरूत्तिजुत्ता जिणमयह्नि ।
21. (क) आवश्यकनियुक्ति, 1570
(ख) उत्तराध्ययन- शान्त्याचार्य टीका, पत्र 706
22. मूलाचार, भा. 1, पृ. 470 23. आवश्यकनिर्युक्ति, 1571-1573
24. मूलाचार, पृ. 470
25. प्रवचनसारोद्धार, गा. 199-200
26. (क) प्रवचनसारोद्धार, द्वार 4, गा. 200 (ख) प्रत्याख्यानभाष्य, पृ. 166-167
(ग) प्रबोधटीका, भाग 3, पृ. 106
27. (क) प्रवचनसारोद्धार, गा. 200 की टीका
28. (क)
(ख) अंगुट्ठ- मुट्ठि- गंठी, घर सेउस्सास थिवुग जोइक्खे । भणियं सकेअभेयं, धीरेहिं अणंतनाणीहिं ॥
मूलाचार, 6/629-640
आवश्यकनिर्युक्ति, 1578
नमुक्कार पोरिसीए, पुरिमड्ढेगासणेगठाणे य। आयंबिल अभत्तट्ठे, चरिमे य अभिग्ग विगई ॥
आवश्यकनिर्युक्ति, 1579
(ख) प्रवचनसारोद्धार, गा. 201-202 की टीका
(ग) प्रत्याख्यानभाष्य, गा. 3
29. आयामम्- अवश्रावणं, अम्लं च सौवीरकं त एव प्रायेण व्यञ्जने यत्र भोजने ओदन-कुल्माषसत्कु प्रभृतिके तद् आयामाम्लं समय भाषया उच्यतेपंचाशक, गा. 9 की अभयदेव टीका, पत्र 92 धाउ- सोसणं । कामग्घं मंगलं सायं, एगट्ठा अंबिलस्सावि ॥
30. अंबिलं नीरसजलं, दुप्पाय
संबोधप्रकरण, गा. 98
31. मुत्तो समणो धम्मो, निप्पावो उत्तमो अणाहारो । चउप्पाओऽभत्तट्ठो, उववासो तस्स एगट्ठा ॥
वही, 99