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________________ 388... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में उपसंहार भारतीय संस्कृति और विशेषत: जैन संस्कृति त्याग प्रधान है। इस परम्परा में त्याग को ही जीवन का लक्ष्य माना गया है, भोग को नहीं। भोग प्रधान संस्कृति उपादेय नहीं है, क्योंकि उसके परिणाम भयावह हैं जैसे- रोग, शोक, संपात, संघर्ष, कलह, अशान्ति आदि। जबकि त्यागमूलक संस्कृति सुख, शान्ति और आनन्द से परिपूर्ण है । षडावश्यकों में त्याग (प्रत्याख्यान) का सर्वोत्तम स्थान माना गया है। जिस प्रकार सामायिक द्वारा समत्व की सिद्धि करके मुक्ति पर्यन्त पहुँच सकते हैं; चतुर्विंशतिस्तव द्वारा दर्शन बोधि, ज्ञान बोधि और चारित्रबोधि को प्राप्त करके शिवसुख साध सकते हैं; वंदन द्वारा ज्ञान और क्रिया में कुशल होकर मोक्षसुख को प्राप्त कर सकते हैं; प्रतिक्रमण द्वारा आत्मशुद्धि करके परमानन्द की प्राप्ति कर सकते हैं और कायोत्सर्ग द्वारा शुभध्यान की श्रेणि चढ़ते हुए परमपद में स्थिर हो सकते हैं उसी प्रकार प्रत्याख्यान द्वारा संयम धर्म की साधना करके सिद्धिपद के अधिकारी हो सकते हैं। प्रत्याख्यान का मूल लक्ष्य आत्म दोषों का निराकरण, उन्हें पुनः न करने का संकल्प और ज्ञान आदि सद्गुणों की प्राप्ति है। वस्तुतः प्रत्याख्यान अमर्यादित जीवन को मर्यादित या अनुशासित बनाता है। जैन सिद्धान्त में संसार बन्ध का एक कारण अविरति भी माना गया है, प्रत्याख्यान अविरति का निरोध करता है। सत असत प्रज्ञा के आधार पर प्रत्याख्यान भी सत असत कहलाता है। भगवतीसूत्र में गौतमस्वामी परमात्मा महावीर से प्रश्न करते हैं कि किस साधक का सुप्रत्याख्यान है और किस साधक का दुष्प्रत्याख्यान है? परमात्मा इस शंका का निवारण करते हुए कहते हैं कि जिस आत्मा को जीव- अजीव का परिज्ञान है और प्रत्याख्यान के उद्देश्य को भलीभाँति जानता है उस जीव का प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है। इसके विपरीत जिस आत्मा को जीव - अजीव का परिज्ञान नहीं है और जो प्रत्याख्यान के मर्म को नहीं जानता है उसका प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान है अर्थात समझ पूर्वक किया गया प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान होता है और अज्ञानपूर्वक किया गया प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान कहलाता है । 131 इस शास्त्र पाठ के अनुसार प्रत्याख्यान छोटा हो या बड़ा, उसका यथार्थ
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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