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________________ 386... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में निष्क्रियता का फल सिद्धि है। इसका तात्पर्य है कि प्रत्याख्यान का पारम्परिक फल सिद्धि है। 128 चतुःशरण प्रकीर्णक में प्रत्याख्यान का महत्त्व दर्शाते हुए वर्णित किया है कि गुणधारणा रूप प्रत्याख्यान से तप आचार की और षडावश्यक कर्म से वीर्याचार की शुद्धि होती है। 129 प्रत्याख्यानभाष्य में इसे पूर्व पुरुषों द्वारा आचरित सिद्ध करते हुए कहा गया है कि तीर्थंकर प्रणीत इस प्रत्याख्यान का सेवन करके अनन्त जीवों ने शाश्वत सुखरूप मोक्ष पद को शीघ्र प्राप्त किया है। 1 आधुनिक सन्दर्भ में प्रत्याख्यान आवश्यक की प्रासंगिकता 130 प्रत्याख्यान, यह नियंत्रण में आने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। नियंत्रण जीवन का अभिन्न अंग है अतः प्रत्याख्यान आवश्यक का विशेष प्रभाव व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में देखा जाता है। कई लोगों की इस विषय में कुछ गलत धारणाएँ भी है कि जैसे प्रत्याख्यान बंधन कारक है और बंधन प्रगति में बाधक है। परन्तु जो लोग इसमें निहित रहस्यों एवं इसकी महत्ता को जानते एवं समझते हैं वे लोग वर्तमान के प्रतिस्पर्धात्मक युग में इसे संतोष प्राप्ति का अचूक उपाय मानते हैं। व्यक्तिगत जीवन में भी इसके द्वारा अनिष्ट प्रवृत्तियों एवं अनावश्यक व्यय पर नियंत्रण किया जा सकता है। जीवन में बढ़ती भोगवृत्ति, सुख पाने की लालसा, इच्छा आदि को कम करने में भी इसकी अहम भूमिका हो सकती है। समाज में बढ़ते आर्थिक भेद को एवं आपसी वैमनस्य को शांत करने हेतु यह सहायक हो सकता है। सामन्यतया वैयक्तिक जीवन में बढ़ती इच्छाओं के कारण अनेकानेक समस्याएँ उत्पन्न होती है। इसी कारण से अनेकानेक सुख-सुविधाओं के बीच भी व्यक्ति खुश नहीं है। प्रत्याख्यान के माध्यम से प्राप्त अल्प सामग्री में भी सुख एवं संतोष पूर्वक रहा जा सकता है तथा अनेक अनावश्यक चिंताओं एवं परिश्रम से भी बचा जा सकता है। किसी भी वस्तु का त्याग या प्रत्याख्यान होने पर उस संदर्भ में संकल्प - विकल्प उपस्थित नहीं होता। समाज में तप-त्याग की संस्कृति का विकास होने से भावी पीढ़ी में स्वनियंत्रण का गुण विकसित होता है। आधुनिक जगत में भौतिक संसाधनों के विकास के साथ-साथ नवीन समस्याओं का भी उद्भव हुआ है। नित नए आविष्कारों के साथ विनाश सर्जक
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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