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326...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
दिगम्बर परम्परा में नौवाँ प्रत्याख्यान ‘अध्वानगत' माना गया है, जिसका अर्थ- जंगल या नदी आदि को पार करने के प्रसंग में उपवास आदि का संकल्प करना है।
10. अद्धा- अद्धा का अर्थ है काल, मुहर्त, समय। पौरूषी आदि कालमान के आधार पर किया जाने वाला प्रत्याख्यान, अद्धा प्रत्याख्यान है।25
दिगम्बर मत में दसवें प्रत्याख्यान का नाम सहेतुक है। उसका अर्थउपसर्ग आदि के निमित्त उपवास आदि करना है।
तुलना- श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं में मान्य दस प्रत्याख्यान के नाम एवं स्वरूप को लेकर किंचिद् वैषम्य है। स्वरूपगत अन्तर पूर्व विवरण के साथ स्पष्ट कर चुके हैं। नाम सम्बन्धी अन्तर इस प्रकार है- श्वेताम्बर मतानुसार चौथा नियन्त्रित, सातवाँ परिमाणकृत, नौवाँ संकेत और दसवाँ अद्धा प्रत्याख्यान है किन्तु दिगम्बर मतानुसार चौथा निखण्डित, सातवाँ परिमाणगत, नौवाँ अध्वानगत और दसवाँ सहेतुक प्रत्याख्यान है। सांकेतिक प्रत्याख्यान
संकेत या चिह्न विशेष पूर्वक ग्रहण किया जाने वाला प्रत्याख्यान सांकेतिक कहलाता है। सामान्यतया नमुक्कारसी, पौरुषी आदि प्रत्याख्यान का समय पूर्ण हो जाने पर भी मुँह धोने में विलम्ब हो, तब यह प्रत्याख्यान किया जाता है। यह आठ प्रकार से होता है अथवा इस प्रत्याख्यान में निम्न संकेतों का आश्रय लिया जाता है।
1. अंगुट्ट सहियं- जब तक मुट्ठि में अंगूठा रहे तब तक आहार पानी का त्याग है अथवा जब तक मुट्ठि में अंगूठा डालकर उसे पुन: अलग न कर दूं, तब तक मुँह में कुछ भी नहीं डालूंगा इस प्रकार का संकल्प करना अंगुष्ठ संकेत प्रत्याख्यान है। वर्तमान में ऊपर वर्णित दूसरा अर्थ अधिक प्रचलित है।
2. मुट्ठि सहियं- जब तक मुट्ठि बाँधकर रखू तब तक आहार-पानी का त्याग है अथवा जब तक मुट्ठि बाँधकर पुनः खोल न दूं तब तक चतुर्विध आहार का सेवन नहीं करूंगा, इस प्रकार का मानसिक संकल्प करना मुट्ठिसहियं संकेत प्रत्याख्यान है।
3. गंट्टि सहियं- जब तक वस्त्र या डोरी आदि में गाँठ बाँधकर खोल न दं, तब तक किसी प्रकार का आहार ग्रहण नहीं करूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा करना गंट्ठिसहियं संकेत प्रत्याख्यान है।