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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...323 ज्ञाता का, उसके ज्ञान का अथवा उसके आत्म प्रदेशों का स्मरण करना भाव प्रत्याख्यान है। भाव प्रत्याख्यान के अनेकशः भेद हैं।
दशविध प्रत्याख्यान- पूर्वनिर्दिष्ट सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान दस प्रकार का बतलाया गया है। उसका स्वरूप वर्णन इस प्रकार है20
1. अनागत- आगामी काल में किए जाने वाले उपवास आदि विशिष्ट तप पहले कर लेना। जैसे पर्दूषण पर्व में करने योग्य तेला आदि तप शासन सेवार्थ अथवा कर्त्तव्य निर्वाहनार्थ पर्दूषण से पूर्व कर लेना। मूलाचार टीका के अनुसार चतुर्दशी आदि में करने योग्य तपश्चर्या को त्रयोदशी आदि में पहले ही कर लेना, अनागत प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यान के इस भेद में निर्धारित समय आने से पहले ही अमुक प्रत्याख्यान का पालन कर लिया जाता है इसलिए इसका नाम न + आगत = अनागत प्रत्याख्यान है।
2. अतिक्रान्त- अमुक दिन में करणीय या पर्वतिथि में करणीय तप को पर्व तिथि के बाद करना। जैसे- पयूषण पर्व में करने योग्य तपश्चर्या को कारणवशात पर्युषण आदि व्यतीत होने के पश्चात करना, अतिक्रान्त प्रत्याख्यान है।
निर्धारित समय का अतिक्रमण होने के बाद इस प्रत्याख्यान का पालन किया जाता है अत: इसका नाम अतिक्रान्त है।
3. कोटिसहित- कोटि का अर्थ है- कोण। पहले दिन आयंबिल का प्रत्याख्यान कर, दूसरे दिन पुनः आयंबिल करना- इस प्रकार प्रथम दिन के आयंबिल का पर्यन्त कोण एवं दूसरे दिन के आयंबिल का आरम्भ कोण दोनों कोणों के मिलने से इसको कोटिसहित तप कहा जाता है। अथवा प्रथम दिन आयंबिल, दूसरे दिन कोई अन्य तप और तीसरे दिन फिर आयंबिल करना कोटिसहित तप कहलाता है।21 प्रवचनसारोद्धार आदि के अनुसार जिसमें दो तप के छोर मिलते हो, अथवा एक प्रत्याख्यान का अन्तिम दिन और दूसरे प्रत्याख्यान का प्रारम्भिक दिन हो अथवा पूर्व गृहीत नियम की अवधि पूर्ण होने पर बिना व्यवधान के पुन: तप विशेष की प्रतिज्ञा ग्रहण करना, कोटिसहित प्रत्याख्यान है। जैसे- उपवास के पारणा दिन में दूसरे उपवास का प्रत्याख्यान करना अथवा उपवास के पारणा दिन में आयंबिल, नीवि आदि का प्रत्याख्यान करना, इस प्रकार सम कोटि या विषम कोटि का प्रत्याख्यान करना, कोटिसहित कहलाता है।