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236... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
तीन अक्खोड़ा, फिर तीन पक्खोड़ा, फिर अक्खोड़ा - पक्खोड़ा इस तरह दोनों क्रियाएँ तीन-तीन बार = 9-9 बार की जाती है।
42. नौ अक्खोड़ा और नौ पक्खोड़ा की क्रिया दायें हाथ पर या बायें हाथ पर या दोनों हाथ पर किस तरह की जानी चाहिये ? इस सम्बन्ध में दो मत हैं। एक परम्परा के अनुसार यह क्रिया दायें हाथ के द्वारा मुखवस्त्रिका का वधूटक बनाकर बायें हाथ पर की जानी चाहिये। दूसरी परम्परा के मतानुसार क्रमशः दो अक्खोड़ा व एक पक्खोड़ा की क्रिया बांये हाथ पर तथा दो पक्खोड़ा व एक अक्खोड़ा की क्रिया दांये हाथ पर की जानी चाहिए अर्थात सुदेव, सुगुरू, सुधर्म आदरू, कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरू, ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरूं- ये 9 बोल बायें हाथ पर बोले जाने चाहिए तथा ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना, चारित्र विराधना परिहरू, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरूं, मनोदंड, वचनदंड, कायदंड परिहरूं- ये 9 बोल दायें हाथ पर बोले जाने चाहिए। यह ध्यान रहे कि बायें हाथ पर बोल बोलते समय दायें हाथ की अंगुलियों से मुखवस्त्रिका का वघूटक बनाये और बायें हाथ की प्रमार्जना करें। इसी तरह दायें हाथ पर बोलों का चिन्तन करते समय बायें हाथ की अंगुलियों से मुखवस्त्रिका का वधूटक बनायें और दायें हाथ की प्रमार्जना करें।
यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि एक अक्खोड़ा या एक पक्खोड़ा की क्रिया में तीन बोल पूर्वक क्रमशः तीन प्रमार्जन की जाती है।
वर्तमान में दोनों परम्पराएँ प्रचलित है। अपनी-अपनी सामाचारी के अनुसार दोनों परम्पराएँ उचित भी है।
43. दिट्ठिपडिलेहणेगा, नव अक्खोडा नवेव पक्खोड़ा । पुरिमिल्ला छच्च, भवे मुहपुत्ती होइ
पणवीसा ॥
(क) प्रवचनसारोद्धार, गा. 96
दिट्ठपडिलेह एगा, छ उड्ढ पप्फोड़ा तिगतिगंतरिआ । अक्खोड पमज्जणया, नव नव मुहपत्ति पणवीसा ॥
44. बाहूसिरमुहहियये, पाएसु य हुंति पिट्ठीइ हुंति चउरो, एसा गुण
(ख) गुरुवंदण भाष्य, गा. 20
तिन्नि पत्तेयं । देह-पणवीसा ॥
पायाहिणेण तिअ तिअ, वामेअर बाहु सीस असुंड्ढाहो पिट्ठे, चउ छप्पय देह
(क) प्रवचनसारोद्धार, गा. 97
मुह हियए । पणवीसा ॥