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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...215
बिना ही अन्य साधुओं को रूचि अनुसार प्रचुर मात्रा में आहार वितरित कर
देना।
____18. खद्धादन- खद्ध अर्थात खाद्य आहार, अदन अर्थात उपभोग करना। दशाश्रुतस्कंध के अनुसार गुरु के साथ आहार करते हुए शिष्य के द्वारा उत्तम भोज्य पदार्थों को बड़े-बड़े कवल द्वारा शीघ्रता से खा लेना खद्धादन आशातना है।
मतान्तर से शिष्य के द्वारा आहार ले आने के पश्चात उसमें से आचार्य को थोड़ा देकर शेष स्निग्ध, मधुर, मनोज्ञ आदि स्वादिष्ट पदार्थ स्वयं खा लेना खद्धादन आशातना है।
___19. अप्रतिश्रवण- गुरु के द्वारा बुलाए जाने पर या उनकी आवाज सुनकर प्रत्युत्तर न देना। उल्लेख्य है कि बारहवीं आशातना भी इसी नाम वाली है, परन्तु दोनों में अन्तर यह है कि 12वीं आशातना रात्रिकालीन निद्रा से सम्बन्धित है और यह 19वीं आशातना दिन में बोलने से सम्बन्धित है।
20. खद्ध (भाषण)- गुरु के साथ कर्कश और तीखी आवाज में बोलना।
21. तत्रगत (भाषण)- गुरु या रत्नाधिक के बुलाने पर शिष्य के द्वारा आसन पर बैठे-बैठे ही प्रत्युत्तर देना। नियमत: गुरु द्वारा बुलाए जाने पर शिष्य को तुरन्त अपने स्थान से उठकर 'मत्थएण वंदामि' कहते हुए गुरु के सम्मुख उपस्थित हो जाना चाहिए।
22. किं भाषण- गुरु के द्वारा आवाज देने पर क्या? क्या है? क्या कह रहे हो? इत्यादि शब्द बोलना तथा गुरु के समीप जाकर आवाज देने का कारण नहीं पूछना।
23. तुं भाषण- गुरु को भगवन्! श्रीपूज्य! आप आदि सम्मानजनक शब्दों से सम्बोधित करना चाहिए। इसके विपरीत तूं, तुम, ताहरा आदि निम्न कोटि वाले शब्दों से सम्बोधित करना अथवा मुझे उपदेश देने वाले तुम कौन होते हो? ऐसे तुच्छ वाक्यों का प्रयोग करना।
24. तज्जात (भाषण)- गुरु जिन शब्दों में कहे, पुनः उन्हीं शब्दों में गुरु के सामने प्रत्युत्तर देना, जैसे आचार्य कहे- “तूं बीमार की सेवा क्यों नहीं करता? तूं बहुत प्रमादी हो गया है" तब शिष्य कहे कि "तुम स्वयं सेवा क्यों नहीं करते, तुम स्वयं प्रमादी हो गये हो" आदि प्रकार से गुरु को ही शिक्षा देते