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________________ मंगल नाद षडावश्यक का अर्थ है- छः आवश्यक क्रियाएँ जो चारित्रिक पृष्ठभूमि के निर्माण का मुख्य आधार है । इन क्रियाओं का परिपालन करते हुए महाव्रतों एवं अणुव्रतों के पालन में अधिक सजगता एवं अप्रमत्तता आती है। मनोभूमि को निर्मल एवं व्यक्तित्व को सद्गुण ग्राह्य बनाने में यह क्रिया अनन्य सहायक बनती है। आजकल रूढ़ प्रवाह से षडावश्यक को प्रतिक्रमण की संज्ञा दे दी गई है किन्तु वास्तविकता यह है कि प्रतिक्रमण इन छः कृत्यों का समूह है। षडावश्यक के विषय में यदि श्रुत साहित्य पर दृष्टि करें तो आगम युग से अब तक अनेक कृतियाँ प्राप्त होती है। जैन धर्म की प्रचलित शाखाओं में परम्परागत कारणों से आज कुछ सामान्य भिन्नताएँ अवश्य है परन्तु सभी का लक्ष्य एक ही है। साध्वी सौम्यगुणाजी ने षडावश्यक का यह कार्य करते हुए प्राचीन प्रमाणों के आधार पर नवीन तथ्य प्रकट किए हैं। जिससे तद्विषयक समग्र संकलन पाठकों को एक साथ प्राप्त हो सकेगा। साध्वीजी ने वर्तमान संदर्भ में कार्य करते हुए प्रचलित समस्त जैन श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्पराओं के साथ वैदिक एवं बौद्ध परम्परा से इसका तुलनात्मक अध्ययन भी किया है। षडावश्यक क्रिया से पारिवारिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान कैसे हो? तनाव, ईर्ष्या, क्रोध, मान आदि पर नियंत्रण कैसे किया जाए ? युवा पीढ़ी को इसके प्रति कैसे जागरूक बनाया जाए ? वर्तमान की Fast जीवन शैली में यह कैसे उपयोगी बने? आदि अनेक विषयों पर सूक्ष्म चिन्तन प्रस्तुत किया है। जिससे यह शोध कृति पीढ़ी दर पीढ़ी आराधकों को सद्राह दिखाने में सहायक बनेगी। साध्वीजी अत्यन्त श्रमशील, दृढ़ मनस्वी, श्रुत संवर्धिनी और गुरुजन कृपा पात्री हैं। इनकी अध्ययन रूचि से सम्पूर्ण खरतरगच्छ संघ ही नहीं अन्य अनेक श्रमण-श्रमणी संघ एवं विद्वत् जन भी परिचित हैं। सभी के सहयोग एवं सद्भावना से ही इनका यह महत् कार्य अल्पावधि में सहज रूप से सम्पन्न हो पाया है। इनके श्रुत समर्पण एवं अथक प्रयास का ही परिणाम है कि यह मेरे साथ शासन कार्यों को संभालते हुए अपने अध्ययन कार्य में संलग्न रही और परिणाम स्वरूप इस विशाल साहित्य की सृजनहार बनी। साध्वीजी की श्रुत पिपासा इसी प्रकार वृद्धिंगत रहे और ऐसे अनेक कार्यों की सृजिका बने । यही अन्तर भावना! आर्य्या शशिप्रभा श्री
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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