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________________ वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...183 इच्छामि खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए, अणुजाणह मे मिउग्गहं, निसीहि अहो कायं काय-संफासं खमणिज्जो भे! किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे! दिवसो वइक्कंतो? जत्ता भे? जवणिज्जं च भे? खामेमि खमासमणो! देवसि वइक्कम, आवस्सिआए पडिक्कमामि। खमासमणाणं देवसिआए, आसायणाए, तित्तीसन्नयराए, जं किंचि मिच्छाए, मण-दुक्कडाए वय-दुक्कडाए काय-दुक्कडाए, कोहाए माणाए मायाए लोभाए, सव्वकालियाए, सव्वमिच्छोवयाराए, सव्व धम्माइक्कमणाए, आसायणाए जो मे अइआरो कओ, तस्स खमासमणो। पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। 30 वन्दन आवश्यक का पालन कर्ता सुगुरुवंदनसूत्र को निम्न विधिपूर्वक उच्चारित करें1. सर्वप्रथम खड़े होकर 'इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए अणुजाणह' इतना पद बोलकर गुरु अवग्रह में प्रवेश करने के लिए आज्ञा मांगे। 2. फिर 'मे मिउग्गहं निसीहि' शब्द बोलते हुए अवग्रह में प्रवेश कर गोदोहिक आसन में बैठे। 3. फिर अ - शब्द आसन पर रखे हुए रजोहरण, चरवला या मुखवस्त्रिका31 पर गुरु चरणों की कल्पना करके दोनों हाथों की दसों अंगुलियों से उसका स्पर्श करते हुए बोलें। हो - शब्द दसों अंगुलियों से ललाट को स्पर्श करते हुए बोलें। का - शब्द दसों अंगुलियों से चरवला आदि को स्पर्श करते हुए बोलें। यं - शब्द दसों अंगुलियों से ललाट को स्पर्श करते हुए बोलें। का - शब्द दसों अंगुलियों से चरवला आदि को स्पर्श करते हुए बोलें। य - शब्द दसों अंगुलियों से ललाट को स्पर्श करते हुए बोलें। 4. संफासं - पद मुखवस्त्रिका पर अंजलिबद्ध हाथों को स्पर्शित कर, ____ मस्तक झुकाते हुए बोलें। 5. 'खमणिज्जो भे किलामो' से लेकर 'वइंक्कंतो' तक के पद करसंपुट को मस्तक पर रखते हुए बोलें। 6. ज - शब्द कल्पित गुरुचरणों की स्थापना को दोनों हाथों की दसों
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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