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सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...109
क्रियाएँ स्थूल या सूक्ष्म रूप से छहों आवश्यकों में समाविष्ट हो जाती है। सामायिक प्रतिज्ञासूत्र में छ: आवश्यक निम्न रूप से अन्तर्निहित हैं
1. 'करेमि.....सामाइयं' –समता पूर्वक सामायिक करने का संकल्प करता हूँ, यह सामायिक आवश्यक है।
__2. 'भन्ते.....भदन्त.....भगवान'- तीर्थंकर परमात्मा का उपकार स्मरण, उत्कीर्तन करना, यह चतुर्विंशति आवश्यक है। __3. 'तस्स भंते'- गुरु के बहुमान (वन्दन) पूर्वक सावद्य योग रूप प्रवृत्ति का निषेध करता हूँ, यह वन्दन आवश्यक है। ___4. 'पडिक्कमामि.....'- पाप कार्यों से निवृत्त होता हूँ अथवा पापजन्य व्यापार से मुक्त होने के लिए प्रायश्चित्त करता हूँ, यह प्रतिक्रमण आवश्यक है।
5. 'अप्पाणं..... वोसिरामि'- मैं आत्मा को उस पाप रूप व्यापार से हटाता हूँ, यह कायोत्सर्ग आवश्यक है।
6. 'सावज्ज.....जोगं.....पच्चक्खामि'- पाप रूप प्रवृत्ति का त्याग (निषेध) करता हूँ, यह प्रत्याख्यान आवश्यक है।
जैन अनुयायियों को इस सूत्र के निहितार्थ पर गहराई से पुनर्विचार कर इस दिशा में शीघ्रमेव प्रयत्नशील होना चाहिए, क्योंकि सामायिक द्वारा छहों आवश्यकों का स्वयमेव परिपालन हो जाता है। 'करेमि भंते' सूत्र का विशिष्टार्थ एवं तात्पर्यार्थ
इस सूत्र का मूल नाम सामायिक सूत्र है। इस सूत्र का आरम्भ ‘करेमि भंते' पद से होने के कारण यह ‘करेमिभंते सूत्र' इस नाम से भी प्रसिद्ध है तथा सामायिक क्रिया में मुख्य और महापाठ रूप होने से ‘सामायिक दंडक' के नाम से भी पहचाना जाता है।
करेमि- ग्रहण करता हूँ, स्वीकार करता हूँ।
जैन सूत्रों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी शिष्य के हृदय में उत्तम कार्य करने का भाव पैदा हो जाए तो उसे गुरु के समक्ष प्रकट करें और उनकी आज्ञानुसार तद्योग्य प्रवृत्ति शुरू करें। इस तरह विनय सामाचारी का पालन करना, आध्यात्मिक जीवन की आराधना का आवश्यक अंग है। अतः प्रत्येक धार्मिक क्रिया प्रारम्भ करने से पूर्व विनय प्रदर्शित करना जरूरी है।
यहाँ 'करेमि' पद का अर्थ 'करता हूँ' इतना ही नहीं है, बल्कि ‘करने की