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64...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
• मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी जीव में सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक की प्राप्ति युगपत होती है, किन्तु देशविरति और सर्वविरति सामायिक की भजना है अर्थात हो भी सकती है और नहीं भी।
• अवधिज्ञान में सम्यक्त्व, श्रुत और देशविरति सामायिक की प्राप्ति एक साथ होती है अर्थात अवधिज्ञानी जीव पहले से ही उक्त तीनों सामायिक से युक्त होते हैं।
• मन:पर्यवज्ञान में देशविरति सामायिक को छोड़कर शेष तीन सामायिक की प्राप्ति होती है।
• भवस्थ केवली सम्यक्त्व और चारित्र दोनों सामायिक से युक्त होते हैं। सामायिक और कर्मस्थिति
संसारी जीव कर्मप्रकृतियों की तरतमता के आधार पर कब, कितनी सामायिक प्राप्त कर सकता है? आवश्यकनियुक्ति में बताया गया है कि जिस जीव में आठों कर्म प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति हो, उस समय वह सामायिक चतुष्टयी में से एक भी सामायिक प्राप्त नहीं कर सकता। ___ जब जीव में आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतियों की स्थिति अंत: कोटाकोटी सागरोपम परिमाण रहती है, तब वह चारों में से कोई भी सामायिक प्राप्त कर सकता है।78 सामायिक और संज्ञी-असंज्ञी
आचार्य भद्रबाहु के अनुसार भव्य और संज्ञी (व्यक्त मनवाले) जीव सम्यक्त्व आदि चारों में से किसी भी सामायिक को प्राप्त कर सकते हैं। असंज्ञी, नोसंज्ञी (सिद्ध) और अभव्य- ये तीनों जीव किसी भी सामायिक को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।79
यद्यपि सिद्ध जीव सम्यक्त्व सामायिक से पूर्वप्रतिपन्न होते हैं किन्तु सम्यक्त्व वर्जित तीन सामायिक संसारी जीवों के ही संभव है। सामायिक त्रय के साहचर्य के कारण सम्यक्त्व सामायिक को भी संसारी जीवों से सम्बन्धित मानकर सिद्धों में उसका निषेध किया गया है। असंज्ञी जीवों में भी सास्वादन सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक पूर्व प्रतिपन्न होते हैं। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी-भवस्थ केवली सम्यक्त्वसामायिक और चारित्रसामायिक से पूर्व प्रतिपन्न होते हैं।80