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विनयार्पण
तुम शान्त जैसे ठहरा जल हो ।
तुम मुखर जैसे खिला कमल हो ।
तुम दृढ़ संकल्पी जैसे अडिग हिमालय हो ।
तुम महापुण्य के स्वामी, जैसे देवों के आलय हो ।
तुम शरणागत प्रतिपाल जैसे इच्छा पूरण कल्पतरू हो । तुम पुण्य के अभिधान जैसे विघ्न निवारक मंगल चऊ हो । ऐसे
खरतर संघ के पारस पुरुष, साहित्य दिवाकर, जग वल्लभ, उपाध्याय भगवन्त पूज्य गुरुदेव श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के
अनन्त आस्थामय चरणपुंज में सादर समर्पित