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________________ उपसंहार...257 प्रतिसेवना (दोषाचरण) की भिन्नता होने पर भी प्रतिसेवक (गीतार्थ या अगीतार्थ) तथा अध्यवसाय के भेद से समान प्रायश्चित्त देने पर भी तुल्य शोधि हो सकती है। प्रस्तुत विषय की स्पष्टता के लिए निम्न उदाहरण पठनीय है-एक व्यक्ति ने तीव्र अध्यवसाय से मासिक प्रायश्चित्त जितनी प्रतिसेवना (दोषजन्य प्रवृत्ति) की, तो उसे एक मास का प्रायश्चित्त दिया जा सकता है। दूसरे ने मन्द अध्यवसाय से दो मास प्रायश्चित्त जितनी प्रतिसेवना की, तो उसे प्रत्येक मास के पन्द्रह दिनों के अनुपात से एक मास का प्रायश्चित्त दिया जा सकता है। तीसरे ने मन्दतम अध्यवसाय से तीन माह प्रायश्चित्त जितनी प्रतिसेवना की, तो उसको प्रत्येक मास के दस-दस दिनों के अनुपात से एक मास का प्रायश्चित्त दिया जा सकता है। चौथे ने अतिमन्दतम अध्यवसाय से चार माह प्रायश्चित्त जितनी प्रतिसेवना की, तो उसको प्रत्येक मास के साढ़े सात दिनों के अनुपात से एक मास का प्रायश्चित्त दिया जा सकता है।' ___ इस बात की पुष्टि हेतु भाष्यकार ने ‘पाँच वणिक् एवं पन्द्रह गधे' का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है। वह संक्षेप में इस प्रकार है-एक गाँव में पाँच वणिक भागीदारी में व्यापार करते थे। उन पाँचों का समान विभाग था। उनके पास पन्द्रह गधे हो गए। वे सभी गधे भिन्न-भिन्न भारवहन करने में समर्थ थे। उनके भारवहन की क्षमता के आधार पर उनके मूल्य में भी अन्तर आ गया। वे पाँचों उनका समविभाग न कर पाने के कारण परस्पर झगड़ने लगे। आखिर समाधान पाने के लिए एक बुद्धिमान व्यक्ति के पास गए। उसके द्वारा पूछे जाने पर गधे का सहीसही मूल्य बतलाया गया। तब उस बुद्धिमान व्यक्ति ने कलह का निपटारा करते हुए साठ रुपये के मूल्य वाला एक गधा एक व्यापारी को दिया, दूसरे को तीसतीस रुपयों के मूल्य वाले दो गधे दिए, तीसरे को बीस-बीस रुपयों के मूल्य वाले तीन गधे दिए, चौथे व्यापारी को पन्द्रह-पन्द्रह रुपयों के मूल्य वाले चार गधे दिए और पाँचवें को बारह-बारह रुपयों के मूल्य वाले पाँच गधे दे दिए। इससे सभी व्यापारियों को समान लाभ हो गया।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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