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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 243 इसमें स्तेय के अन्तर्गत ब्राह्मण के हिरण्य की चोरी, मन्दिर के धन की चोरी, सुवर्ण आदि रत्नमय धातुओं की चोरी, अन्न की चोरी, पशु-पक्षी की चोरी, रेशमी वस्त्रों की चोरी, भूमि की चोरी, लकड़ी की चोरी, धरोहर की चोरी, खाट व आसन की चोरी, परस्त्री अपहरण की चोरी को पापकारी माना है तथा निषिद्ध सम्भोग के अन्तर्गत गुरु की भार्या के साथ संभोग, द्विज की स्त्री के साथ संभोग, नीच जाति की नारी से संभोग, मित्र की स्त्री के साथ संभोग, पुत्रवधु के साथ संभोग, चाण्डाल कन्या के साथ संभोग, कुंवारी कन्या के साथ संभोग, रजस्वला स्त्री के साथ संभोग, सहोदर बहन के साथ संभोग, दिन में संभोग, चार महापातकियों से संसर्ग करने पर अपराध माना जाता है। इन सब दोषों की मुक्ति के लिए अलग-अलग प्रायश्चित्त कहे गये हैं । 4. वैदिक मान्यता में अशुद्ध स्पर्श एवं अपवित्र भोजन आदि करने पर प्रायश्चित्त का विधान है। सामान्यतः अपवित्र व्यक्तियों का संग करने में, पक्षियों को काटने एवं स्पर्श करने में, मृतक अशौच में, जन्म अशौच में, शूद्र का अन्न खाने में, चाण्डाल के गृह में प्रवेश व स्पर्श करने में, निषिद्ध भोजन के सेवन में, पातकी के साथ एक पंक्ति में बैठकर खाने में, प्याज-लहसुन आदि का भक्षण करने में, नीच लोगों से मित्रता करने में पाप माना गया है। इस तरह के दुष्पाप प्रायश्चित्त दूर हो सकते हैं। 5. हिन्दू परम्परा में प्रकीर्ण पापकर्मों से मुक्त होने के लिए भी प्रायश्चित्त का विधान किया गया है। यहाँ अग्निहोत्र न करने पर, अपवाद सेवन करने पर, अनियमित ढंग से बातचीत करने पर, ऋणों को न चुकाने पर, नास्तिकवादी बनने पर, अयज्ञीय पुरुष द्वारा पुरोहित बनने पर, कुटिलता का वर्णन करने पर, अपने निमित्त भोजन बनाने पर, असत्य भाषण करने पर, संकरीकरण एवं अपात्रीकरण करने पर, सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय शयन करने पर, जल में नग्न स्नान करने पर, वृक्ष आदि का छेदन करने पर, औषधियों को व्यर्थ काटने पर, आक्रोश करने पर, स्वप्न दोष होने पर, पानी में अपनी छाया देखने पर इन कृत्यों को प्रकीर्ण (सामान्य) पापकर्म की संज्ञा दी गई है। इनके सिवाय ब्रह्मचारी, सन्यासी, आजीविका निर्वाहक आदि से सम्बन्धित प्रायश्चित्त भी दर्शाये गये हैं।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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