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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 237
• यदि मुनि को भाषा समिति में दोष लगे तो एक कायोत्सर्ग करें। यदि कोई मुनि सम्यग्दृष्टि श्रावक के दोष प्रकाशित करे तो चार उपवास, यदि जल, अग्नि, बुहारी, चक्की, उखली और पानी आदि के वचनों का प्रयोग करें तो तीन उपवास, यदि शृङ्गारादि के गीत गायें अथवा किसी से गवायें तो चार उपवास का प्रायश्चित्त है।
• यदि मुनि अज्ञानतावश कन्दमूल आदि वनस्पति का एक बार भक्षण करे तो एक कायोत्सर्ग, अनेक बार कन्दमूल आदि वनस्पतियों का भक्षण करे तो एक उपवास, रोग के कारण कन्द आदि वनस्पतियों का भक्षण करे तो एक कल्लाण, अपने रस स्वाद के लिए कन्द आदि का भक्षण करे तो पंच कल्लाण, अपने सुख के लिए अनेक बार कन्द आदि का भक्षण करे तो पुनर्दीक्षा का प्रायश्चित्त है।
• यदि मुनि के द्वारा आहार ले लेने पर दाता कहे कि भोजन में जीव था उसको दूरकर हमने आपको आहार दिया है नहीं तो अन्तराय हो जाती, ऐसा सुन लेने पर प्रतिक्रमण सहित उपवास, आहार लेते समय थाली के बाहर गीली हड्डी आदि भारी अन्तराय दिखाई पड़े तो प्रतिक्रमण पूर्वक तीन उपवास, यदि भोजन में गीली हड्डी चमड़ा आदि भारी अन्तराय आ जाय तो प्रतिक्रमण पूर्वक चार उपवास प्रायश्चित्त है।
• यदि मुनि सूर्योदय से तीन या चार घड़ी पहले अथवा गोसर्ग समय में एक बार आहार करे तो एक कायोत्सर्ग, अनेक बार भोजन करे तो एक उपवास, कोई मुनि रोग के कारण एक बार अपने हाथ से अन्न बनाकर भोजन करे तो एक उपवास, इसी प्रकार यदि कोई मुनि रोग के कारण अनेक बार अपने हाथ से बनाकर भोजन करे तो तीन उपवास, यदि निरोग अवस्था में कोई मुनि अनेक बार अपने हाथ से बनाकर भोजन करे तो पुनर्दीक्षा का प्रायश्चित्त आता है।
• यदि कोई मुनि दिन में काठ, पत्थर आदि हटाये या दूसरी जगह रखें तो एक कायोत्सर्ग, कोई मुनि रात्रि में काठ, पत्थर आदि को उठाये, हिलाये या दूसरी जगह रखे या रात्रि में इधर-उधर भ्रमण करे तो एक उपवास का प्रायश्चित्त है।