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________________ 232... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण • भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व यदि कोई मृत जीव दिख जाये तो उस अन्न का त्याग कर अन्य भोजन करना चाहिए | | 71 || • भोजन प्रारम्भ करने के बाद मृत प्राणी का कलेवर दिखें तो उस दिन भोजन का परित्याग कर देना चाहिए | | 72 || • अस्पृश्य-चाण्डाल आदि को देखने पर, उनका वचन सुनने पर तथा मार, काट आदि अशुभ वचन सुनने पर भोजन का त्याग कर देना चाहिए।।74।। • उपद्रवकारी विडाल (बिल्ली) आदि के द्वारा चूहा पकड़ते हुए देख लिया जाए, उनका घात करते हुए अथवा प्रदीप आदि से आकृष्ट हो पतंग आदि को हु देखने पर भोजन का त्याग कर देना चाहिए | | 75 | • भोजन करते वक्त दीपक बुझ जाये अथवा अन्य लोकनिन्द्य पदार्थ पके भोजन में दिख जाये तो उसी समय भोजन का त्याग कर देना चाहिए ।। 77। • यदि भोजन सचित्त मिश्रित हो और प्रमादवश देखने में न आये और खाने में आ जाए, तो ज्ञात होने पर भोजन का त्याग करें और स्नान करे ||79|| • यदि भोजन रजस्वला स्त्री द्वारा परोसा गया हो तो उसका पूर्णत: त्याग करें और बर्तन को राख से माँजकर अग्नि संस्कार द्वारा उसकी शुद्धि करें । 18011 • यदि अभक्ष्य या अयोग्य भोजन का सेवन हो जाये तो उसकी शुद्धि के लिए उपवास करें और दश कायोत्सर्ग एवं जप भी करें ||82 | • अरिहंत परमात्मा ने ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए चार प्रकार का सूतक बतलाया है। पहला स्त्रियों के मासिक धर्म से होने वाला, दूसरा प्रसूति से होने वाला, तीसरा मृत्यु से होने वाला और चौथा संसर्ग से होने वाला माना गया है। • किसी बच्चे का जन्म होने पर अथवा नाभिच्छेदन के बाद किसी बालक के मर जाने पर माता-पिता और कुटुम्बियों को पूर्ण सूतक मानना चाहिए। 1190-9211 • यदि अपने माता-पिता एवं भाई दूर देश में मर जायें तो पुत्र और भाई को दस दिन का सूतक मानना चाहिए तथा दूर के कुटुम्बियों को एक दिन का सूतक मानना चाहिए || 931
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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