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230...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• यदि गृहस्थ की चार दिनों तक षट्कर्म आचार की हानि हो गई हो तो उस दोष की शुद्धि के लिए उपरोक्त संख्या से पच्चीस कलश अधिक स्थापित कर प्रतिमा का अभिषेक करें तथा पूर्वोक्त विधि से पूजा स्तवन आदि भी करें। यह सर्व विधि पाँच दिवस पर्यन्त करनी चाहिए। इसी के साथ दो हजार बार नवकार मन्त्र का जाप करें। दो दिन एकासन करें तथा प्रत्येक दिशा में कायोत्सर्ग करें। इसका अभिप्राय यह है कि महामन्त्र का दो हजार जाप दिग्वंदना पूर्वक करना चाहिए।।20-21।।
• यदि दस दिवस पर्यन्त नित्य अनुष्ठान का समय उल्लंघित हो जाये तो उस दोष शद्धि के लिए पाँच सौ कलश स्थापित कर प्रतिमा की अभिषेक पूर्वक पूजा-अर्चना करें। फिर चारों संध्याओं में एक-एक हजार (दशमाला) का जाप करें तथा कुल चार हजार पुष्प चढ़ायें। प्रथम जाप निन्यानवें बार करें तथा चार दिन एकासन करें। सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ प्रभु का गुण स्मरण करें। सोलह कायोत्सर्ग पूर्वक सोलह स्तोत्रों का पाठ करें।।23-25।।
• यदि एक सप्ताह दैनिक नियम का क्रम उल्लंधित हो जाये तो कलशों को सूत्र से सात बार वेष्टित कर क्रम से स्थापित करें। चारों दिशाओं में बीसबीस कुम्भ संयोजित करें। चारों कोणों विदिशाओं में छब्बीस-छब्बीस घण्टों की स्थापना करें। मध्य में नौ घण्टों की स्थापना करनी चाहिए।।26।।
• यदि एक पक्ष दैनिक षट्कर्मों का अनुष्ठान नहीं कर सके तो उस दोष की निवृत्ति के लिए इक्यासी कलशों को सम्यक् प्रकार से सूत्र द्वारा वेष्टित करें, उनमें सौषधि मिश्रित जल भरें और पंच नवकारमन्त्र का जाप करते हुए जिनबिम्ब का अभिषेक करें। नमस्कार मन्त्र का जाप पचपन सौ बार करें तथा दो उपवास और छह एकाशन करें। पंचपरमेष्ठी का गुण स्मरण करते हुए बीस कायोत्सर्ग करें।।27-29।।
• यदि एक महीने पर्यन्त आवश्यक कर्म की क्षति हो जाये तो सर्वौषधि मिश्रित जल से परिपूर्ण एक सौ आठ कलशों को स्थापित कर यथोक्त विधि से जिन प्रतिमा का अभिषेक करना चाहिए तथा इक्यासी सौ महामन्त्र का एकाग्रचित्त से जाप करें। इसी के साथ तीन उपवास, दो ऊनोदरी तप एवं तीस कायोत्सर्ग करें।