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________________ xxiv...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण पुस्तक के आधार पर प्रायश्चित्त ग्रहण न करे अन्यथा महादोष का भागी होगा, क्योंकि इसका अधिकार मात्र सद्गुरु को ही होता है। साध्वी सौम्यगुणाजी ने जैन धर्म की प्रचलित परम्पराओं में प्रायश्चित्त सम्बन्धी विवरण तथा श्रमण एवं ब्राह्मण परम्परा में इसकी मूल्यवत्ता का तुलनात्मक अध्ययन कर इस शोध कार्य को और अधिक प्रामाणिक भी बनाया है। अत: जिज्ञासु वर्ग के लिए यह कृति अत्यन्त उपयोगी बनेगी। मैं उनकी श्रमशीलता, ज्ञानपिपासा एवं गूढान्वेषी प्रज्ञा की सहृदय अनुमोदना करते हुए उनके उत्तरोत्तर प्रगतिशीलता की मंगल कामना करती हूँ। आर्या शशिप्रभा श्री
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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