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________________ 192...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण विग्रुट्स्पर्शने लघु चेष्यते। पाते च मुखवस्त्रस्य चतुःपादो विशुद्धिकृत्।।77।। अप्रतिलेखिते स्थाने कृते मूत्रविसर्जने। दिवास्वापे च विज्ञेयमेकान्नं शुद्धिहेतवे।।78।। एवं सामायिकेपि स्यात्प्रायश्चित्तं यथोचितम्। (आचारदिनकर भा. 2, पृ. 256) . नियम होने पर भी सामायिक न करने पर तथा सामायिक का भंग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . सामायिक में जल एवं अग्नि आदि का स्पर्श करने पर जितनी बार स्पर्श किया हो, उतने पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • राजा तथा धर्म के कारण देशावगासिक व्रत का भंग होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • नियम होने पर भी पौषध न करे तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • उपाश्रय से बाहर जाते समय 'निसीहि' आदि न बोलने पर, स्थण्डिलभूमि की प्रमार्जना न करने पर, प्रमार्जन किये बिना वस्तु लेने या रखने पर, प्रमार्जन किये बिना कपाट आदि खोलने या बन्द करने पर, काया का प्रमार्जन किये बिना खुजली करने पर, दीवार-स्तम्भ आदि का प्रमार्जन किये बिना सहारा लेने पर, गमनागमन में लगे दोषों की आलोचना न करने पर तथा उपधि की प्रतिलेखना न करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। • पौषधव्रत में दूसरों के अंगों का स्पर्श होने पर तथा ज्योति का स्पर्श होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • मुखवस्त्रिका कहीं गिर जाये तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • अप्रमार्जित भूमि पर मूत्र का विसर्जन करने पर और पौषध व्रत में दिन लेकर सोने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। मतान्तर से चारों शिक्षाव्रतों का खण्डन होने पर प्रत्येक व्रत के विशोधनार्थ पाँच उपवास या दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। 5. ज्ञानाचार से संबंधित दोषों के प्रायश्चित्त 'ज्ञानाचारे श्रावकाणां प्रायश्चित्तमुदीर्यते। अकालाविनयाद्येषु ज्ञानभङ्गेषु चाष्टसु।।1।। प्रत्येकं शुद्धये तेषु प्राणाधार उदीरितः। ज्ञानिनां प्रत्यनीकत्वे ज्ञानस्य च सुभोजनम्।।2।। पाठव्याख्यानयोर्विघ्नकरणे पाद
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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