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174...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण खिड्डे कुणंतस्स उ. 2। सुत्तं विणा जिणपूयाइकज्जेसु पवाहेण पयस॒तस्स उ. 4। साहम्मियकज्जेसु जहासत्तीए अपयट्टमाणस्स उ. 4। एवं संखेवेणं सव्वविरई भणिया।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 88-89) • साधु-साध्वी के द्वारा रात्रिभोजनविरमणव्रत का उल्लंघन अशन से होने पर नीवि, पुरिमड्ढ, एकासना, आयंबिल, उपवास- इन पाँचों का पांच गुणा प्रायश्चित्त आता है।
• इसी तरह रात्रिभोजनविरमणव्रत का भंग खादिम से होने पर पूर्वोक्त पाँचों का चार गुणा, स्वादिम से होने पर पाँचों का तीन गुणा एवं पानी से होने पर पाँचों का दुगुणा प्रायश्चित्त आता है।
• शुष्क वस्तुओं- बादाम, सुपारी, लवंग आदि का संग्रह करने पर दो उपवास तथा स्निग्ध वस्तुओं-घृत, तेल आदि का संग्रह करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• निष्ठुरता पूर्वक सचित्त वस्तुओं का सेवन करने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• अपक्व फल अर्थात पूरी तरह से नहीं पके हुए आम आदि का उपभोग करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• दुष्पक्व फल अर्थात अच्छी तरह से नहीं सीझे हुए मटर, टमाटर, ककड़ी आदि का सेवन करने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
आवश्यक प्रयोजन से आधाकर्मी आहार ग्रहण करने पर नीवि आदि पाँचों का पाँच गुणा प्रायश्चित्त आता है।
• निष्प्रयोजन आधाकर्मी आहार ग्रहण करने पर पूर्वोक्त पाँचों भेदों का बीस गुणा प्रायश्चित्त आता है।
.आधाकर्मी, क्रीत, मालापहत आदि सोलह उदगम दोषों का सेवन करने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
. कारण विशेष से आहार आदि के अतिरिक्त काल में भिक्षाचर्यादि के लिए गमन करने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• अकाल वेला में निष्प्रयोजन भिक्षाचर्यादि क्रियाएँ करने पर पूर्वोक्त पाँचों का दुगुणा प्रायश्चित्त आता है।