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134...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण आं.। दुक्कोसं जाव नावा-उड्डुवाइणा नदीगमणे आं.। कोसं जाव हरियाणं भूदगअगणिवाऊणं विगलिंदियाणं पंचिदियाणं मद्दणे कमेण उ., आं., उ., पंचकल्लाणाणि। कोसं ओसाए मीसोदगे य गमणे पु., कोसदुगे ए., जोयणे
आं.। सजीवदगपाणे छटुं, जलूगामोयणे गाढनइ उत्तारणे य आं.। पईवफुसणयसंखाए आं.। कंबलिपावरणं विणा पईवफुसणे उ., सकंबले आं., उ., विज्जुफुसणे नि., अकंबले पु.। छप्पईहरनासणे पंचकल्लाणं। संनाकिमिपाडणे उ.। उदउल्लवत्थसंघट्टे पु.। जलणे संघट्टिए ओसक्किए य
आं.। किसलयमलणे उ.। संखाईयाणं बेइंदियाणं उद्दवणे दोन्नि पंचकल्लाणाई, उप. 201 संखाईयाणं तेइंदियाणं उद्दवणे तिन्नि पंचकल्लाणाई, उ. 30। संखाईयाणं चउरिंदियाणं उद्दवणे चत्तारि पंचकल्लाणाई, 40। जहन्न-मज्झिम-उक्कोसेसु मुसावाय-अदिन्नादाणपरिग्गहेसु जहासंखं ए., आं., उ.। मेहुणस्स चिंताए आं.। मेहुणपरिणामे उ.। रागे छटुं। नपुंसगस्स पुरिसस्स वा वयण सेवाए मूलं। अन्नोन्नं करणे पारंचियं। गब्भाहाण-गब्भसाडणेसु मूलं। सकाममेहुणसेवणे मूलं। करकम्मे अट्ठमं। बहुठाणे तम्मि पंचकल्लाणं। लेवाडदव्वोवलित्तपत्ताइपरिवासे उ.। सुंठिमाइसुक्कसंनिहिभोगे उ.। घयगुलाइअल्लसंनिहिभोगे छटुं। दिवागहिय-दिवाभुत्ताइ-सेसनिसिभत्ते अट्ठमं। सुक्क-अल्लसंनिहिधारणे जहासंखं पु., ए.। गयं मूलगुणपायच्छित्तं।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 81) मूलगुण एवं पाँच महाव्रत सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त
• पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय एवं प्रत्येक वनस्पतिकाय का स्पर्श होने पर नीवि, इन जीवों को सामान्य पीड़ा देने पर पुरिमड्ढ, इन्हें विशेष पीड़ा देने पर एकासना तथा इन्हें मारणान्तिक कष्ट देने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• विकलेन्द्रिय (बेइन्द्रिय से चउरिन्द्रिय तक) जीवों एवं अनन्तकायिक जीवों का स्पर्श करने पर यथासंख्या पुरिमड्ढ, सामान्य कष्ट देने पर एकासना, विशेष कष्ट देने पर आयंबिल तथा प्राणान्तक कष्ट देने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय एवं मनुष्य पंचेन्द्रिय जीवों को सामान्य वेदना देने पर