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28...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
तथ्यमूलक विषय को अधिक स्पष्ट करते हुए प्रभु ने आगे कहा – श्रमण दो दिन का उपवास (बेला तप) करके उतने कर्म नष्ट करता है जितने कर्म नैरयिक जीव लाखों वर्षों में भी नहीं कर सकता। पुनः कहा - एक श्रमण तीन दिन का उपवास (तेला तप) करके उतने कर्म नष्ट कर देता है जितने कर्म नैरयिक जीव करोड़ों वर्षों में भी क्षीण नहीं कर पाते। इस प्रसंग से सिद्ध होता है कि तप से विपुल कर्मों की निर्जरा होती है।12
अनशन तप से विषय-विकार, कषाय एवं कलषित वृत्तियाँ मन्द पड़ती हैं। ब्रह्मचर्य के परिपालन से वीर्य शक्ति में वृद्धि होती है। स्वाध्याय-ध्यान आदि शुभ प्रवृत्तियों में जुटे रहने से तीनों योग की अशुभ चेष्टाएँ अवरुद्ध हो जाती हैं। इस भाँति अनशन से कई लाभ होते हैं। __उल्लेख्य है कि साधारण मानव इस अनशन को स्वीकार नहीं कर सकते, उनके लिए यह अशक्य कार्य है, किन्तु असाधारण पुरुष इसे स्वेच्छापूर्वक अंगीकार करते हैं। 2. ऊनोदरी तप
बाह्य तप का दूसरा भेद ऊनोदरी है।13 ऊनोदरी का शब्दार्थ है ऊन- कम, उदर- पेट अर्थात उदर में जितना समाये उससे कम खाना अथवा भूख से कम भोजन करना ऊनोदरी तप कहलाता है। स्थानांग आदि आगमों में इसका नाम "अवमोदरिका' है।14 अवम् का अर्थ है - कुछ कम या खाली, उदर का अर्थ है पेट अर्थात भोजन करते समय पेट को कुछ खाली रखना अवमोदरिका कहलाता है। उत्तराध्ययन आदि शास्त्रों में इसे 'अवमौदर्य' कहा गया है।15 इस प्रकार आगम में ऊनोदरी के तीन नाम मिलते हैं; किन्तु तीनों शब्दों का भावार्थ एक ही है कि भूख से कम खाना।
यहाँ एक अच्छा प्रश्न यह उपस्थित होता है कि पूर्णतया आहार का परित्याग करना तो तप कहलाता ही है, किन्तु भूख से कम खाना कैसे तप हो सकता है?
इसका समाधान है कि एक बार भोजन का सर्वथा त्याग कर देना सहज है, क्योंकि उसमें खाने का विकल्प ही समाप्त हो जाता है; किन्तु भोजन का मानस बनने के बाद एवं भोजन हेतु थाली के सामने बैठने के बाद रुचि से कम खाना, खाते-खाते रसना इन्द्रिय पर संयम रखना और स्वादिष्ट भोजन की लालसा को छोड़ देना उपवास करने से बहुत दुष्कर है।