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[ सेवार्पण
जिनके पुनीत पाद पद्यों में, बीता मेरा बचपन | जिनकी अन्तर प्रेरणा से, पाया महाव्रतों का धन ।।
जिनकी कृपा से प्राप्त हुई. मुझको विद्या रेखा । जिनकी निश्रा में रहकर, जीवन मूल्यों को सीखा ।।
जिनकी संयम वीणा पर, बजती तप-जप की सरगम । ज्ञान-ध्यान की फुलवारी से, महक रहा है जीवन हरदम ।।
गुरु सज्जनकी सज्जनता जिसमें, झलके विचक्षण गुणों का दर्पण | उस गुरुवर्या की धूलि पाकर,महक उठा जीवन का कण-कण ।।
सेसी अनन्य उपकारिणी, संयम उत्कर्षिणी, उत्साह वर्धिनी संघरत्ना पूज्य गुरुवर्या शशिप्रभाश्रीजी म.सा. के
आस्था प्रणीत पाद पद्मों में
अक्षय शब्दांजली
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