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190...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
दस दिनों में निर्विकृति-नीरस भोजन लेना चाहिए और उत्तरार्द्ध के दस दिनों में एकलठाणा के साथ अर्थात भोजन के लिए बैठने पर पहली बार जो भोजन परोसा जाय उसे ग्रहण करना चाहिए। दोनों ही अर्थों में भोजन का परिमाण ऊपर लिखे अनुसार ही समझना चाहिए।
23. श्रुत व्रत - श्रुत व्रत में मतिज्ञान के अट्ठाईस, ग्यारह अंकों के ग्यारह, परिकर्म के दो, सूत्र के अठासी, प्रथमानुयोग और केवलज्ञान के एकएक, चौदह पूर्वो के चौदह, अवधिज्ञान के छह, चूलिका के पाँच और मनःपर्यव ज्ञान के दो इस प्रकार एक सौ अट्ठावन उपवास होते हैं। एक-एक उपवास के बाद एक-एक पारणा होता है। इसलिए यह व्रत तीन सौ सोलह दिनों में पूर्ण होता है। ___24. दर्शनशुद्धि व्रत - इस तप में औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक इन तीन सम्यग्दर्शनों के निःशङ्कित आदि आठ-आठ अंकों की अपेक्षा चौबीस उपवास एकान्तर से होते हैं। इस तरह यह व्रत अड़तालीस दिन में समाप्त होता है। ____ 25. तपःशुद्धि व्रत - बाह्य और आभ्यन्तर की अपेक्षा तप के दो भेद हैं। उनमें बाह्य तप के अनशन, ऊनोदरी, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन और कायक्लेश ये छह भेद हैं और आभ्यन्तर तप के प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और कायोत्सर्ग ये छह भेद हैं। इनमें अनशनादि बाह्य तपों के क्रम से दो, एक, एक, पाँच, एक और एक इस प्रकार ग्यारह उपवास होते हैं और प्रायश्चित्त आदि छह अन्तरङ्ग तपों के क्रम से उन्नीस, तीस, दश, पाँच, दो और एक इस प्रकार सड़सठ उपवास होते हैं। दोनों के मिलाकर अठहत्तर उपवास एकान्तर पारणा से होते हैं।
26. चारित्रशुद्धि व्रत - पाँच महाव्रत, तीन गुप्ति, पाँच समिति के भेद से चारित्र के तेरह भेद हैं। चारित्रशुद्धि व्रत में इन सबकी शुद्धि के लिए पृथक्पृथक् उपवास होते हैं। प्रथम अहिंसा महाव्रत के सम्बन्ध में 1 बादर एकेन्द्रियपर्याप्तक, 2 बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, 3 सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक, 4 सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, 5 द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, 6 द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक, 7 त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, 8 त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक, 9 चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक, 10 चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक, 11 संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक, 12 संज्ञी पंचेन्द्रिय