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182...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा और दो उपवास पारणा। इस प्रकार इस व्रत में तेईस उपवास और सात पारणे होते हैं तथा यह व्रत तीस दिन में समाप्त होता है। इस तप के करने से क्षीर स्रावित्व, अक्षीण महानस आदि ऋद्धियाँ, अवधिज्ञान और अन्त में मोक्ष प्राप्त होता है। ___7. मुरजमध्य व्रत - इस तप यन्त्र में पाँच से लेकर दो तक, दो से लेकर पाँच तक बिन्दएँ होती हैं। इसमें जितनी बिन्दएँ हों उतने उपवास और जितने स्थान हों उतने पारणे समझने चाहिए। इनका क्रम यह है- पाँच उपवास पारणा, चार उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, दो उपवास पारणा, दो उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, चार उपवास पारणा और पाँच उपवास पारणा। इस प्रकार इसमें अट्ठाईस उपवास और आठ पारणे कुल छत्तीस दिन में यह व्रत समाप्त होता है। इसका फल मृदङ्गमध्यविधि के समान है।
8. एकावली व्रत - इसमें एक उपवास तथा एक पारणे के क्रम से चौबीस उपवास और चौबीस पारणे होते हैं। यह व्रत अड़तालीस दिन में समाप्त होता है तथा इससे अखण्ड सुख की प्राप्ति होती है।
9. द्विकावली व्रत - इसमें अड़तालीस बेला और अड़तालीस पारणे होने से इसे द्विकावली तप कहते हैं। यह व्रत छयानवे दिन में पूर्ण होता है। इसके फल से उभय लोक में सुख प्राप्ति होती है। ___10. मुक्तावली व्रत - इस तप यन्त्र में एक से लेकर पाँच तक और चार से लेकर एक तक बिन्दु होते हैं। यह मोतियों की माला के समान प्रसिद्ध है। इसमें जितनी बिन्दु हैं उतने उपवास और जितने स्थान हैं उतने पारणे होते हैं। इस प्रकार इस व्रत में पच्चीस उपवास और नौ पारणे चौंतीस दिन में पूर्ण होते हैं। उनका क्रम यह है - एक उपवास पारणा, दो उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, चार उपवास पारणा, पाँच उपवास पारणा, चार उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, दो उपवास पारणा और एक उपवास पारणा। इस व्रत के करते ही मनुष्य समस्त लोगों का अलंकार स्वरूप श्रेष्ठ हो जाता है और अन्त में सिद्धालय प्राप्ति स्वरूप आत्यन्तिक फल की प्राप्ति होती है।
11. रत्नावली व्रत - जिस तप यन्त्र में एक से लेकर पाँच तक और पाँच से लेकर एक तक बिन्दुएँ हों वह रत्नावली व्रत है। इसके फल से रत्नावली के समान अनेक गुणों की प्राप्ति होती है। इसमें जितनी बिन्दुएँ हों उतने उपवास